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________________ को प्रभावित करने वाली और (2) आत्मा के चारित्र गुण को प्रभावित करने वाली। ग्रन्थियां कैसे निर्मित होती हैं ? किसी गाँव में एक तालाब था। उसमें एक कछुआ रहता था। तालाब के किनारे पर गाँव के मनुष्य आया जाया करते थे। उनकी परछाईं जल में पड़ती थी। परछाईं तो जल में उल्टी ही पड़ती है-पैर ऊपर की ओर सिर नीचे की ओर। इन परछाइयों को देखकर कछुए ने धारणा बना ली कि मनुष्य के इस ग्रन्थि का यथार्थ भेदन नहीं होता। ___आत्मसाक्षात्कार अथवा आत्म-दर्शन के लिए साधक अपने मन को संसाराभिमुखी होने से रोकता है। तब उसकी बुद्धि (तर्कणा-हिताहित निर्णायिका शक्ति) का विकास होता है। बुद्धिमय क्षेत्र ही मेधस् का आश्रय स्थान है, आश्रय है और यही ब्रह्मज्ञान का तोरणद्वार है। सुषुम्ना प्रवाह प्रकाशित होने पर साधक वहाँ पहुँच सकता है। तन्त्रयोग में इसी को कुल-कुण्डलिनी जागरण कहा जाता है। इसका साक्षात्कार होते ही जीव की ब्रह्मग्रन्थि शिथिल हो जाती है। षट्चक्रों के अनुसार ब्रह्मग्रन्थि तथा उसके स्वामी ब्रह्मा का स्थान नाभिचक्र है। ब्रह्मग्रन्थि-भेद सत्य की प्रतिष्ठा है। ब्रह्मग्रन्थि-भेद होने पर साधक की आगामी कर्मों (किये जाने वाले कर्म) के प्रति आसक्ति का नाश हो जाता है। साधक हानि-लाभ, यश-अपयश में अनासक्त हो जाता है, उसकी फलासक्ति छूट जाती है। (2) संचित कर्म अथवा विष्णुग्रन्थि का निवास हृदयचक्र में है। विष्णुग्रन्थि-भेद से प्राण प्रतिष्ठा होती है। विष्णु ग्रन्थि का स्थान प्राणमय कोष है। प्राणयम कोष में जीव के अनेक जन्मों के संस्कार संचित रहते हैं। इन्हीं को संचित कर्म कहा गया प्राणमय कोष सूक्ष्म शरीर है। सूक्ष्म शरीर में ही संस्कार संचित रहते हैं। संस्कार ही प्राणी के लिए यथार्थ बंधन हैं। .साधना क्षेत्र में प्राण का नाम विष्णु है। विष्णुग्रन्थि के भेद के लिए जीव भवबीजीय संस्कारों का विसर्जन करता है, अपने अहं का त्याग करता है और शरणागतियोग की साधना करता है, भगवान तथा सद्गुरु की शरण ग्रहण करता है। इस शरणागतियोग से उसके भवबीजीय संस्कार नष्ट हो जाते हैं और विष्णुग्रन्थि का भेदन हो जाता है, गांठ खुल जाती है। इस ग्रन्थि-भेद के फलस्वरूप आत्मा की कामनाओं तथा वासनाओं का विनाश हो जाता है, उसे चित्तविशुद्धि प्राप्त हो जाती है। * ग्रन्थिभेद-योग साधना * 179
SR No.002471
Book TitleAdhyatma Yog Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2011
Total Pages512
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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