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________________ (2) काल-दिन में अर्थात् सूर्य के प्रकाश में देखकर चलना, रात्रि में लघुनीति या बड़ी नीति के लिए पूँजणी (या रजोहरण) से पूँजकर गमन करना तथा रात्रि को विहार न करना, (3) मार्ग-उन्मार्ग में गमन न करना क्योंकि उन्मार्ग में जीवों की अधिक विराधना की आशंका रहती है, (4) यतना-यह चार प्रकार से की जाती है-(क) द्रव्य से-भूमि को देखकर चलना, (ख) क्षेत्र से-गाड़ी की धूसरी प्रमाण अथवा अपने शरीर प्रमाण या 3% हाथ प्रमाण भूमि को देखकर चलना, (ग) काल से दिन में देखकर और रात्रि में पूँजणी से पूँजकर चलना, (घ) भाव से-गमन करते समय सिर्फ गमन में ही उपयोग रखे, न स्वाध्याय करे, न किसी से वार्तालाप करे और न मार्ग में होने वाले शब्दों आदि की ओर ही ध्यान दे। मन को गमन क्रिया में एकाग्र करके चले। (2) भाषा समिति-क्रोध, मान, माया, लोभ, हास्य, भय, मुखरता, विकथा आदि आठ दोषों से रहित यथासमय, परिमित और निर्दोष भाषा बोलना, श्रमणयोगी की भाषा समिति है।' - इसका पालन भी चार प्रकार से किया जाता है-(1) द्रव्य से-सोलह (16) प्रकार की भाषा न बोलना-(1) कर्कश, (2) कठोर, (3) हिंसाकारी, (4) छेदक, (5) भेदक, (6) पीड़ाकारी, (7) सावध, (8) मिश्र, (9) क्रोधकारक, (10) मानकारक, (11) मायाकारक, (12) लोभकारक, (13-14) राग-द्वेषकारक, (15) मुख-कथा (अविश्वसनीय-सुनी-सुनाई बात) और (16) चार प्रकार की विकथा। (2) क्षेत्र से-मार्ग में चलते समय बात-चीत न करना। (3) काल से-एक प्रहर रात्रि व्यतीत हो जाने के बाद उच्च स्वर से न बोलना (4) भाव से-राग-द्वेष रहित अनुकूल, सत्य, तथ्य, शुद्ध एवं निर्दोष वचन बोलना।' (3) एषणा समिति-आहार आदि की गवेषणा, ग्रहणैषणा तथा परिभोगैषणा में आहार आदि के सभी दोषों का निवारण करना एषणा समिति है। इसके पालन के चार प्रकार हैं-(1) द्रव्य से-47 दोषों (42 आहार 1. 2. (क) उत्तराध्ययन 24/9-10 (ख) योगशास्त्र 1/37 (क) उत्तराध्ययन 24/11 (ख) ज्ञानार्णव 18/11. उत्तराध्ययन 24/12 3. * जयणायोग साधना (मातृयोग) * 159 *
SR No.002471
Book TitleAdhyatma Yog Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2011
Total Pages512
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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