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________________ इसके विपरीत यदि श्रमणयोगी इस प्रतिमा का सम्यक् रूप से पालन करने में सफल होता है तो इसका परिणाम उसके लिए अतीव हितकर, शुभ, सामर्थ्यकर, कल्याणकर एवं सुखद होता है। उसे तीन प्रकार की महान और अद्वितीय विशिष्ट उपलब्धियाँ प्राप्त होती हैं (1) अवधिज्ञान की उपलब्धि, (2) मन:पर्यवज्ञान की प्राप्ति; और (3) केवलज्ञान की प्राप्ति। साधक को जब केवलज्ञान की उपलब्धि हो जाती है तो फिर बाकी ही क्या रहता है, उसे अपने ध्येय की प्राप्ति ही हो जाती है, योगमार्ग की यहाँ सार्थकता ही हो जाती है। जिस लक्ष्य को लेकर साधक योग की साधना का प्रारम्भ करता है, वह लक्ष्य उसे हस्तगत हो जाता है। ___ प्रतिमायोग की साधना गृहस्थ साधक सुदृढ श्रद्धा (सत्यतथ्य के प्रति प्रगाढ़ विश्वास) के साथ प्रारम्भ करता है। श्रद्धायोग के साथ ज्ञानमार्ग का सम्बल लेकर वह दृढ़तापूर्वक क्रियायोग पर कदम बढ़ाता है तथा यम-नियमों की साधना करता हुआ वह क्रिया-योग का अवलम्बन लेता हुआ श्रमण-गृहत्यागी एवं संसारत्यागी श्रमण की भूमिका तक पहुँचता है, उसका लक्ष्य श्रमण बनकर ज्ञान, संयम और चारित्र की साधना में पूर्ण रूप से लीन हो जाना होता है। श्रमण का लक्ष्य होता है कैवल्य प्राप्त करके सिद्ध, बद्ध और मुक्त हो जाना। वह अपनी प्रतिमाओं का प्रारम्भ शरीर और इन्द्रियों को संयमित करते हुए तपोयोग तथा ध्यानयोग की साधना-आराधना करता है; आसन-जय करके शरीर की क्षमताओं को बढ़ाता है तथा परीषह-उपसर्ग सहन करके समताभाव एवं तितिक्षा की साधना करता है, अन्तिम प्रतिमा में तो वह सम्पूर्ण योग का अवलम्बन लेता है, मन एवं इन्द्रियों को ध्येय में स्थिर करके स्वयं ध्येयाकार बनता है और अपने लक्ष्य-कैवल्य को प्राप्त कर लेता है। इस प्रकार इन प्रतिमाओं की साधना 'प्रतिमायोग' है; क्योंकि इस साधना में प्रारम्भ से अन्त तक योग के विभिन्न अंगों की साधना स्वयमेव ही हो जाती है। विभिन्न प्रकार के यम-नियम तो गृहस्थ और संसार-त्यागी श्रमण की प्रारम्भिक प्रतिमाओं में ही साधित किये जाते हैं। श्रावक सामायिक प्रतिमा में योग के सभी अंगों, जैसे-आसन, ध्यान आदि की साधना करता है; तथा श्रमण तो अपनी अन्तिम प्रतिमा में निर्विकल्प समाधि तक पहुँच जाता है, तभी तो उसे कैवल्य की प्राप्ति होती है। ००० * विशिष्ट योग-भूमिका : प्रतिमा-योगसाधना * 153 *
SR No.002471
Book TitleAdhyatma Yog Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2011
Total Pages512
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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