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से त्रस प्राणियों का दिल दुखता हो, उनकी हिंसा होती हो, वह वध नाम का अतिचार है।
(3) छविच्छेद- किसी भी त्रस प्राणी का अंग- उपांग काट देना, आजीविका का संपूर्ण रूप से अथवा आंशिक रूप से नाश कर देना, धन्धा, रोजगार बन्द करा देना, उचित पारिश्रमिक से कम देना - सभी छविच्छेद नाम के अतिचार हैं।
(4) अतिभारारोपण - बैल, घोड़ा, ऊँट आदि पशुओं तथा कुली आदि पर उनकी शक्ति से अधिक भार लादना, उनकी शक्ति से अधिक काम लेना अतिभारारोपण है।
(5) भक्तपानविच्छेद- अपने अधीनस्थों को समय पर भोजन - पानी न देना, समय पर वेतन न देना आदि; जिससे अभावों के कारण उन्हें कष्ट हो । (2) स्थूल मृषावादविरमण
इसका दूसरा नाम सत्याणुव्रत है । सत्य बात को अपने स्वार्थ या द्वेषवश बदल देना, कुछ का कुछ कह देना, ऐसी बात कहना जिससे किसी का दिल दुखे, उसकी हानि हो - यह सब असत्य है । ऐसा असत्य सत्याणुव्रती श्रावक नहीं बोलता |
इस व्रत में श्रावक पाँच महान असत्यों का त्याग कर देता है - ( कन्यालीक - कन्या अर्थात् मनुष्यों के सम्बन्ध में झूठ बोलना, (2) गवालीक- पशुओं के बारे में झूठ बोलना, ( 3 ) भूम्यालीक - भूमि, खेत, मकान आदि के बारे में झूठ बोलना, ( 4 ) न्यासापहार - किसी की रखी हुई धरोहर को झूठ बोलकर हड़प जाना, (5) कूट साक्षी झूठी गवाही देना ।
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इस व्रत के पाँच अतिचार हैं - (1) सहसाभ्याख्यान - बिना अच्छी तरह जाने-समझे तथा सोचे- विचारे किसी पर झूठा दोष लगा देना, ( 2 ) रहस्याख्यान - किसी की गुप्त बात प्रगट कर देना, (3) स्वदारमंत्रभेद - अपनी स्त्री की गुप्त बात प्रकट कर देना, (4) मृषोपदेश - किसी को अनाचार तथा झूठ बोलने की शिक्षा देना, गलत सलाह देना, (5) कूटसाक्षी - झूठी गवाही देना ।
(3) स्थूल अदत्तादानविरमण
इसे अचौर्याणुव्रत भी कहा जाता है। श्रावक इसमें स्थूल चोरी का त्याग करता है। स्थूल चोरी के अनेक भेद हैं, यथा - सेंध लगाना, गाँठ काटना, ठगी, राहजनी आदि। जिस क्रिया में अनुचित उपायों से दूसरे का धन, जमीन आदि
* योग की आधारभूमि : श्रद्धा और शील (1) 115