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प्रकाशकीय
परमाराध्य उत्तर भारतीय प्रवर्त्तक श्रद्धेय श्री अमर मुनि जी महाराज द्वारा रचित और संपादित साहित्य आज जैन जगत में सर्वाधिक पढ़ा और पढ़ाया जाने वाला साहित्य पूज्य श्री सरलता और स्पष्टता से निर्धारित विषयों को जिस तार्किकता और प्रामाणिकता प्रस्तुत करते हैं वैसी प्रस्तुति अन्यत्र कम ही देखने को मिलती है।
विगत कई वर्षों से पूज्य प्रवर्तक श्री हिन्दी और इंग्लिश में अनुदित सचित्र आगम साहित्य के प्रकाशन में साधनाशील हैं। आगमों के इस स्वरूप ने जहाँ अज्ञ-विज्ञ सहित समस्त पाठक वर्ग को आकर्षित किया है वहीं विदेशी पाठकों के लिए भी आगमों के स्वाध्याय का मार्ग प्रशस्त किया है। आज पूज्य प्रवर्तक श्री के हजारों पाठक विदेशों में रहते हैं। संभवत: पूज्य प्रवर्त्तक श्री जी प्रथम जैन श्रमण हैं जिनका साहित्य अमेरीका, ब्रिटेन, कनाडा और जर्मनी जैसे पाश्चात्य देशों में पढ़ा और पढ़ाया
जैन धर्म दिवाकर आचार्य सम्राट् श्री आत्माराम जी म. द्वारा रचित एवं पूज्य प्रवर्तक श्री जी द्वारा सम्पादित-संवर्द्धित 'अध्यात्म योग साधना' एक कालजयी ग्रन्थ है जिसमें जैन एवं जैनेतर योग का सर्वांगीण चित्रांकन हुआ है। लगभग अट्ठाईस वर्ष पूर्व इस ग्रन्थ का प्रकाशन हुआ था । योग के जिज्ञासुओं द्वारा यह ग्रन्थ बहुत ही चाव से पढ़ा गया। विगत कई वर्षों से यह ग्रन्थ अनुपलब्ध प्रायः था । पाठकों की निरंतर मांग इस ग्रन्थ के लिए बनी हुई थी । पाठकों की इसी मांग को ध्यान में रखते हुए आराध्य प्रवर्त्तक श्री जी के शिष्य सत्तम श्री वरुण मुनि जी म. ने नवीन स्वरूप के साथ इस ग्रन्थ को प्रस्तुत किया है । साज-सज्जा में पूर्व संस्करण से भी आकर्षक यह ग्रन्थ पाठकों के लिए आध्यात्मिक पाथेय सिद्ध होगा ऐसी आशा है।
मानसा निवासी श्री अमरनाथ जी गोयल परिवार एवं श्री धर्मपाल जी जैन परिवार ने श्रुत सेवा के इस महायज्ञ में अपना समर्पित सहयोग प्रदान किया है। इन दोनों परिवारों के हम हृदय से आभारी हैं।
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- अध्यक्ष
पद्म प्रकाशन, पद्म धाम नरेला मंडी दिल्ली