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________________ भावना का महत्त्व प्रदर्शित करते हुए कहा गया है भावेन लभते सर्वं भावेन देवदर्शनं । भावेन परमं ज्ञानं, तस्माद् भावावलम्बनं ॥ बहु जापात् तथा होमात् कायक्लेशादिविस्तरैः । न भावेन विना देवो यन्त्रमन्त्रफलप्रदः ॥ - रुद्रयामल - भाव चूड़ामणि -भाव से सब कुछ प्राप्त होता है, भाव से ही देवदर्शन होता है और भाव से ही श्रेष्ठ ज्ञान प्राप्त होता है, इसलिए भाव का आलम्बन लेना चाहिए। - कितना ही जप किया जाये, होम किये जायें और शरीर को कितना ही कष्ट दिया जाये; किन्तु भाव के बिना देव - यन्त्र-मन्त्र फल नहीं देते। अतः इस भाव सिद्धान्त के अनुसार ही तमोगुणी के लिए पशु - भाव की, रजोगुणी के लिए वीर-भाव की तथा सतोगुणी साधक के लिए दिव्य-भाव की साधना तन्त्रयोग ( वाममार्ग) में बताई गई है। तन्त्रयोग (वाममार्ग) का दूसरा साधन है - कुण्डलिनी । कुण्डलिनी क्या है, बताते हुए श्री जॉन वुडरफ़ ने कहा है Shortly stated Energy (Shakti) polarises itself into two forms, viz., Static or Potential (Kundalini) and Dynamic (Prana) the working forces of the body. -Sir John Woodraffe-Shakti & Shakta अर्थात्-संक्षेप में यह कहा जा सकता है कि शक्ति दो रूपों में प्रकट होती है; यथा - (1) स्थिर रूप में कुण्डलिनी और (2) चल अथवा गत्यात्मक रूप में प्राण ( श्वासोच्छ्वास ) । श्री आर्थर एवलन के शब्दों में Kundalini is the static shakti. It is the individual bodily representive of the great Cosmic Power, which creates and sustains the universe. -Arthur Avalon-The Serpent Power अर्थात् - कुण्डलिनी स्थिर शक्ति है। यह उस महान विश्वव्यापिनी शक्ति का व्यष्टि शरीरस्थित रूप है, जो विश्व की रचना करती है और उसे धारण करती है। *40* अध्यात्म योग साधना *
SR No.002471
Book TitleAdhyatma Yog Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2011
Total Pages512
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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