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नवाँ बोल : उपयोग बारह
[ विशेष बोध (ज्ञान) और सामान्य बोध (दर्शन) का विवेचन ]
पाँच ज्ञान के -
(१) मतिज्ञान,
(२) श्रुतज्ञान, (३) अवधिज्ञान, (४) मनः पर्यवज्ञान, (५) केवलज्ञान ।
तीन अज्ञान के -
(१) मतिअज्ञान,
(२) श्रुतअज्ञान,
(३) अवधिअज्ञान ( विभंगज्ञान ) ।
चार दर्शन के
(१) चक्षुः दर्शन, (२) अचक्षुः दर्शन, (३) अवधिदर्शन, (४) केवलदर्शन ।
जीव का प्रधान लक्षण है चेतना । चेतना की प्रवृत्ति उसका व्यापार उपयोग कहलाता है। अर्थात् चेतना सामान्य गुण है और ज्ञान-दर्शन ये दो उसकी सहज अवस्थाएँ हैं । इन्हीं को उपयोग कहा जाता है। इस प्रकार उपयोग जीव का प्रमुख लक्षण है । संसारी और सिद्ध- जीव की इन दोनों ही अवस्थाओं में यह लक्षण विद्यमान रहता है अर्थात् उपयोग प्रत्येक जीव में होता है जो जीव इन्द्रियों आदि की अपेक्षा से अविकसित हैं उनमें उपयोग अव्यक्त होता है और जो पूर्ण विकसित हैं उनमें यह व्यक्त होता है। उपयोग का यह लक्षण है कि यह त्रिकाल में भी बाधित नहीं हो सकता । यह असंभव, अव्याप्ति, अतिव्याप्ति आदि दोषों से रहित पूर्णतः निर्दोष होता है। बोध, ज्ञान, चेतना, संवेदन आदि शब्द