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आगमज्ञान की आधारशिला : पच्चीस बोल * १६९ *
के पदार्थों-अल्प, बहु, अणु, स्थूल, सचित्त, अचित्त-की न स्वयं मन से चोरी करें, न मन से चोरी करवाएँ और न मन से चोरी करने वाले का अनुमोदन करें। मन के ये अठारह भंग या विकल्प हैं। इसी प्रकार वचन के अठारह और काया के अठारह भंग होते हैं। ये सब मिलकर कुल चौवन भंग होते हैं। अचौर्य महाव्रत की भाँति अपरिग्रह महाव्रत के भी चौवन विकल्प या भंग होते हैं। ऐसे ही अन्य महाव्रतों को अपनाने या पापों को त्यागने के विषय में सोचा जा सकता है।
श्रावक के बारह व्रतों के ४९ विकल्प या भंगों को हम सविस्तार इस प्रकार से समझ सकते हैं। यथा(१) अंक ११, भंग ९-एक करण व एक योग से कथन
१. करूँ नहीं मन से, २. करूँ नहीं वचन से,
३. करूँ नहीं काया से, • ४. कराऊँ नहीं मन से,
५. कराऊँ नहीं वचन से, ६. कराऊँ नहीं काया से, ७. अनुमोदूँ नहीं मन से, ८. अनुमोदूं नहीं वचन से,
९. अनुमोदूं नहीं काया से। - (२) अंक १२, भंग ९-एक करण व दो योग से कथन
१. करूँ नहीं मन एवं वचन से, २. करूँ नहीं वचन एवं काया से, ३. करूँ नहीं मन एवं काया से, ४. कराऊँ नहीं मन एवं वचन से, ५. कराऊँ नहीं वचन एवं काया से, ६. कराऊँ नहीं मन एवं काया से, ७. अनुमोदूँ नहीं मन एवं वचन से, ८. अनुमोदूँ नहीं वचन एवं काया से, ९. अनुमोदूँ नहीं मन एवं काया से।