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________________ चौबीसवाँ बोल :भंग उनचास (त्याग करने के विविध प्रकारों का वर्णन) त्याग की महिमा अनन्त है। लेकिन इसकी अनन्तता तभी सार्थ है जब हमें पदार्थों का बोध हो, उनके स्वरूपादि का परिज्ञान हो। क्योंकि बोध होने पर ही हम यह समझ सकते हैं कि अमुक पदार्थ हमारे लिए उपयोगी हैं, ग्राह्य हैं और अमुक त्याज्य और हेय हैं। जैनशास्त्रों में बोध को प्रज्ञा या परिज्ञा की संज्ञा दी गई है। प्रज्ञा के दो भेद हैं। यथा (१) ज्ञ-प्रज्ञा, (२) प्रत्याख्यान-प्रज्ञा। 'ज्ञ' का अर्थ है-जानना। ज्ञ-प्रज्ञा से पदार्थों के स्वरूपादि को जाना जाता है। कौन-सा पदार्थ हेय या उपादेय है? इसका ज्ञान प्राप्त किया जाता है। प्रत्याख्यान-प्रज्ञा से जो पदार्थ हेय या त्याज्य है उसका त्याग किया जाता है, यानी प्रत्याख्यान-प्रज्ञा से हेय पदार्थों का त्याग किया जाता है। साथ ही त्याग की जो पद्धति है उस पर भी चिन्तन किया जाता है। इस प्रकार ज्ञ-प्रज्ञा के अभाव में, सद्-असद् है उसका विवेक नहीं होता है और प्रत्याख्यान प्रज्ञा-त्याग के अभाव में कर्मों के आस्रव द्वारों को नहीं रोका जा सकता है। अस्तु प्रज्ञा के ये दोनों भेद अत्यन्त महत्त्वपूर्ण हैं। इस बोल में प्रत्याख्यान प्रज्ञा-त्याग के स्वरूप पर विचार किया गया है कि हेय पदार्थ को कैसे त्यागा जाए? जब हमें यह ज्ञात हो जाता है कि अमुक पदार्थ हेय और त्यागने योग्य है तो हम उसे त्याग देते हैं। लेकिन कैसे त्याग किया जाए इस पद्धति को जानना अत्यन्त आवश्यक रहता है। सामान्यतः हम यह जानते हैं कि पाप हेय है और हम पाप का परित्याग कर देते हैं. जैसेअमुक कार्य बुरा काम है, हेय है और हमने प्रतिज्ञा की कि हम अमुक कार्य को नहीं करेंगे और उस काम को छोड़ दिया, बस, त्याग हो गया। यथार्थतः यह त्याग नहीं है। ऐसा त्याग तो मिथ्या दृष्टि जीव भी करते रहते हैं। ऐसा त्याग स्थूल है। प्रत्याख्यान की कोटि में नहीं आता है। प्रत्याख्यान त्याग नौ कोटियों द्वारा पूर्ण होता है, तभी आस्रव द्वार रुक सकता है। प्रस्तुत बोल में ४९ भंग या भंगों का उल्लेख है। भंग का अर्थ है विकल्प। यानी प्रत्याख्यान त्याग के ४९ भंग हैं या विभाग रूप रचना-विशेष हैं या विकल्प हैं।
SR No.002470
Book TitleAgam Gyan Ki Adharshila Pacchis Bol
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVarunmuni
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2011
Total Pages192
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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