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________________ आगमज्ञान की आधारशिला : पच्चीस बोल * १२९ * (१) आर्त्तध्यान, (२) रौद्रध्यान, (३) धर्मध्यान, (४) शुक्लध्यान। इन चारों में पहले दो ध्यान तो सभी संसारी जीवों के होता है। ये दोनों ध्यान संसार को बढ़ाने वाले हैं अतः ये दोनों ध्यान-तप के रूप में स्वीकृत नहीं हैं। धर्म और शुक्लध्यान ही ध्यान-तप के रूप में गृहीत हैं। क्योंकि ये दोनों मोक्षमार्ग का कारण बनते हैं। मोक्ष के सन्दर्भ में कहा गया है कि मोक्ष उत्तम संहनन वालों को ही प्राप्त होता है। अतः उत्तम संहनन वाले ही शुक्लध्यान के अधिकारी माने गए हैं। वर्तमान युग में उत्तम संहनन न होने के कारण साधक धर्मध्यान ही कर सकते हैं क्योंकि मोक्ष की साधना अत्यन्त कठिन साधना है जिसके लिए सुदृढ़ शरीर और सुदृढ़ मन दोनों का ही होना आवश्यक है। इसलिए शुक्लध्यान, जो केवलज्ञान तथा मोक्ष का प्रत्यक्ष एवं साक्षात् हेतु है, के लिए उत्तम संहनन का होना आवश्यक है। शक्लध्यान के लिए अन्तर्मुहूर्त का काल होता है। उत्तम संहनन वाले साधक चित्त की एकाग्रता और योगों का निरोध मुहूर्त काल तक करने की शक्ति और सामर्थ्य रखते हैं। अन्य संहनन वाले जीवों में इतने काल तक चित्त को एकाग्र करने की क्षमता नहीं होती है। उनका ध्यान तो बहुत अल्प समय का होता है। इसलिए उत्तम संहनन वाले साधकों को ही शुक्लध्यान का अधिकारी माना गया है। .. सामान्यतः यह देखा जाता है कि लोग अन्तर्मुहूर्त से भी अधिक समय, यानी कई-कई दिनों या महीनों तक ध्यान करते हैं। वास्तव में यह ध्यान नहीं, ध्यान का प्रवाह है जो अनेक वस्तुओं, विषयों, ध्येयों पर घूमता रहता है। अधिकांश लोग श्वास के सूक्ष्मीकरण और शरीर के शिथिलीकरण तथा एकासन से स्थिर रहने की ही अवस्था को ही ध्यान तथा समाधि मान लेते हैं। जबकि यथार्थतः यह ध्यान नहीं है। ध्यान का प्रधान लक्षण है"एकाग्रचिन्तानिरोधो ध्यानम्।" अर्थात् एकाग्रचित्त-चिन्तन-निरोधरूप ध्यान है जो उत्तम संहनन वाले साधकों को ही मुहूर्त तक रह सकता है। (१) आर्तध्यान ___ संसारी प्राणी चिन्ता, पीड़ा, शोक, कष्ट, दुःख आदि में ही सदा प्रवृत्त रहते हैं और अपने मन को इन्हीं में एकाग्र किए रहते हैं। उनका यह ध्यान
SR No.002470
Book TitleAgam Gyan Ki Adharshila Pacchis Bol
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVarunmuni
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2011
Total Pages192
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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