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________________ गोद में पहुँचता है उसे प्रकृति की विशालता एवं अपनी लघुता की प्रतीति होने लगती है। उस समय वह अपनी रक्षा हेतु मां को याद करता है सर्वशक्तिमयी, वात्सल्यमयी, अभयदात्री, कष्टनिवारिणी मां को। यह भी एक सम्भाव्य कारण हो सकता है जिसके कारण शक्ति या देवी को अधिकतर पर्वत निवासिनी बतलाया गया है। . देवी पुराण को भारतीय शाक्त धर्म का आगम अर्थात् प्रामाणिक ग्रन्थ माना गया है । यह पुराण तन्त्रों को प्रामाणिक मानते हुये भी वेदों का अत्यधिक समादर करता है । गायत्री मन्त्र के साथ ही बहुत से अन्य वैदिक मन्त्रों को भी शक्ति पूजा में स्थान दिया गया है। तीन प्रकार की अग्नि की स्थापना, यज्ञों का विधान, गायत्री जप आदि का वर्णन भी वैदिक प्रभाव का ममर्थन करते हैं। दक्षिणाचार मत का प्रतिपादन भी बहुत अधिक हुआ है। . कई बार ऐसा उल्लेख प्राप्त होता है कि बौद्ध लोग भी देवी की पूजा करते थे । परन्तु उनका अपना पूजा विधान होता है और ये बौद्ध लोग बंगाल के राठ एवं वरेन्द्र प्रदेश में पाये जाते हैं । कामरूप, आसाम एवं भोट देश में भी देवी की पूजा होती रही है । हरिवंश पुराण के समान देवी पुराण भी इस मत से सहमत हैं कि देवी पूजा प्राय: आदिम जातियों में भी हुआ करती थी। शबर, बर्बर, पुलिन्द, पुक्वास आदि जातियाँ पूजा में मद्य और मांस की बलि भी देती थीं। ___ इस पुराण का महत्त्व इस कारण से और भी बढ़ जाता है कि इसमें देवी के विभिन्न स्वरूपों और अवतारों के बारे में बहुत ही मूल्यवान सामग्री एकत्रित है। इस पुराण में वर्णित उन दैत्यों के नाम जिनका देवी संहार करती है सभी के सभी नये हैं। यद्यपि पुराण में धर्म की प्रायोगिक साधना का अधिक वर्णन है फिर भी यह पुराण देवी विन्ध्यवासिनी के विजय युद्ध, एवं शाक्त पीठों का विस्तार से वर्णन करता है । वर्ण्य विषय एवं सम्पूर्णता वर्तमान देवी पुराण में १२८ अध्याय हैं । जबकि कई पांडुलिपियां १३८ अध्याय बतलाती हैं । परन्तु विषयवस्तु एवं श्लोक संख्या की दृष्टि से ये सभी पांडुलिपियां समान ही प्रतीत होती हैं। इस पुराण का प्रारम्भ बड़े ही विचित्र ढंग से होता है एवं बिना किसी भूमिका के देवी नमस्कार के अनन्तर पुराण प्रारम्भ कर दिया जाता है। ऐसी सूचना दी गई है कि महामुनि वशिष्ठ ऋषियों मे पछे जाने पर इस पुराण का प्रवचन करते हैं। महामुनि वशिष्ठ जी ने इस पुराण को चार भागों में विभाजित किया है। १. देवी पु० (६३/१७५, २२/१६, ६०/२१, ६१/७१, ३५/१७-१८) 2. Hazra : Vol II. P. 35.
SR No.002465
Book TitleDevi Puranam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushpendra Sharma
PublisherLalbahadur Shastri Kendriya Sanskrit Vidyapitham
Publication Year1976
Total Pages588
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, L000, & L015
File Size11 MB
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