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________________ १४० षट्त्रिंशोऽध्यायः जय दश-दिशत्व - रूपिणि अशुभाशुभ 'मार्ग चोदनि । शुद्ध-ज्ञान- सुचोदनि मन्त्रात्मके मूर्त्यवस्थिते नमस्ते ॥६॥ जय सकल जन्तु मोहनि मायात्मक रूपिणि दुर्भेये । जय काल देह रूपिणि निश्वासोच्छास वायुतत्वारसे ॥१०॥ offक्त पचसि च दहने पिन्डत्वात् पालयि' वते नमस्ते । जय तत्त्व भाव रूपिणि प्रत्यन्त सूक्ष्मादलक्ष्ये निर्जये ॥११॥ नोत्पन्ने नानुत्पादनि शिवशक्ति परस्वरूपिणि नमस्ते । जय निष्कलार्थ रूपिणि समस्तवस्त्वन्त संस्थितावस्थे ॥१२॥ परमापर सकलगते भगवति वरदे वरे नमस्ते । जयपृव्यंगता ते गुल्माभ्भस्तेजो जङ्घयो ह्यनिलः ॥ १३ ॥ ऊरूभ्यां वियद्गुह्य के द्याहङ्कारगते नमस्ते । जय नाभ्यधः स्ताद् बुद्धिर्नाभ्यां प्रकृति हृदिस्थितः पुरुषः : ॥१४॥ विद्या राग कुचाम्यां नियति परे ह्य रःस्थल गते नमस्ते # । जय कालकण्ठ गते कपालि ' ' घण्टामुखे स्थिता माया । विद्या जिह्वां नाशेत् तत्त्वेश्वर संस्थिते ' 'नमस्ते ॥१५॥ जय त्रुटि गतत्व विन्दुनाद शब्दात्मकञ्च मार्गे तु । शक्ति तद्विराम तत्त्वाघटित तनुं नमस्ते ॥१६॥ ३. मायात्मक रुप रुपिणि क ग । १. शुभ भव क ग । २. चोदनि अविधे क । ४. कलरुप मातृ रुप अनेक विज्ञान धारिणि नमस्ते । जयकाल क्लेद रुपिरिण क्षणादि कल्पांत संस्थितावयवैः । विद्या शुद्ध ज्ञानं नैयामर्थं निस नियति रुपिरिण नमस्ते । जय गगां रुपिरिण पुरुषो वेत्ति चार्थ संवेद्यो गुण पर निष्टचेष्टाय कार्यो व्यक्त रुपिणि संभततन्मात्रबंध निनमति ॥ ५. जय शुशिर गगन क । ६. पालय सिवरे नमस्ते क । ९. नियति पुर स्थागत नमस्ते क । ११. संस्थिते क । ७. सोपेत्रेत्र पोदनि क ग । ८. निष्कला क ग । १०. कापालि घंटा क ग
SR No.002465
Book TitleDevi Puranam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushpendra Sharma
PublisherLalbahadur Shastri Kendriya Sanskrit Vidyapitham
Publication Year1976
Total Pages588
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, L000, & L015
File Size11 MB
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