SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 316
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अपने आदर्श दादागुरु-गुरु वल्लभ के संपूर्ण जीवन पर आधारित विशालकाय ग्रंथ 'आदर्श जीवन' (जिसका लेखन कृष्णलाल वर्मा आदि ने किया) का सफल संपादन किया। वि.सं. 227 (ईस्वी सन् 1968) में शासनपति भगवान् महावीर स्वामी जी का 2500 वां निर्वाण कल्याणक शताब्दी समारोह दिल्ली में राष्ट्रीय स्तर में आयोजित हुआ। इस निमित्त सभी सम्प्रदाय से संबंधित बंधुओं ने एकता का अभूतपूर्व परिचय दिया। आचार्य समुद्र सूरीश्वर जी की अध्यक्षता में चारों जैन सम्प्रदायों ने ऐतिहासिक रूप में समारोह आयोजित किया गया। इस अवसर पर आचार्यश्री जी को 'जिनशासनरत्न' अलंकरण से विभूषित किया गया। अनेकों शहरों से पूज्य श्री जी को अभिनंदन पत्र भेंट किए। वे अनेकों सुश्रावकों को 'भाग्यशाली' शब्द से संबोधित करते थे एवं सच में, जिसे भी वह 'भाग्यशाली' कहते थे, उसके भाग्य के द्वार खुल जाते थे। समता, सरलता और सहिष्णुता - उनके स्वभावी गुण थे। निष्कलंक - निरतिचार संयम द्वारा अनेकों भव्य जीवों को धर्म मार्ग में अग्रसर कर उन्होंने जिनशासन की महती प्रभावना की। प्रतिष्ठित जिनप्रतिमाएं : आचार्य विजय समुद्र सूरीश्वर जी ने सम्यक्त्व स्थिरता एवं सम्यक्त्व विशुद्धि के उद्देश्य से स्थान-स्थान पर जिनमंदिरों की प्राणप्रतिष्ठा कराई थी। जैसे- बोडेली (गुजरात) में वैशाख सुदी 7 वि.सं. 2012 को महावीर स्वामी जी की - पाटण (गुजरात) में माघ सुदी 3 वि.सं. 2013 को कोकालियावास मंदिर की - नाडोल (राजस्थान) में मार्गशीर्ष शुक्ला 6 वि.सं. 2016 को - रूपनगर (दिल्ली) में 27 जनवरी सन् 1961 को शांतिनाथ जिनालय की - हस्तिनापुर (उ.प्र.) में मार्गशीर्ष सुदी 10 वि.सं. 2021 को प्राचीन श्री शांतिनाथ जिनालय का जीर्णोद्धार - फालना (राजस्थान) में मार्गशीर्ष सुदी 6 वि.सं. 2026 को वल्लभ विहार मंदिर - वरली (मुंबई) में 2 फरवरी 1971 को इस प्रकार सूरत, पालीताणा, बिजोवा, वरकाणा, सादड़ी, भरतपुर, बड़ौत, जम्मू, अमृतसर, पट्टी, गंगानगर आदि अनेकों स्थलों पर जिनेश्वर परमात्मा की प्रतिमाओं को प्रतिष्ठित किया। "दर की . महावीर पाट परम्परा 282
SR No.002464
Book TitleMahavir Pat Parampara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChidanandvijay
PublisherVijayvallabh Sadhna Kendra
Publication Year2016
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy