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________________ उन्हीं दिनों आचार्यश्री को ज्ञात हुआ कि पंजाब की कैरोसिंह सरकार ने स्कूल के विद्यार्थियों को नाश्ते में 2-2 अंडे देने के आदेश दिए हैं। अहिंसा धर्म का मूल है। समुद्र सूरि जी ने स्थान-स्थान पर इस आदेश के विरोध में सभाएं की एवं विस्तृत जनमत तैयार किया, सरकार को विरोध पत्र लिखे। फलस्वरूप पंजाब सरकार को अपना अधर्मपूर्ण आदेश वापिस लेना पड़ा। आचार्य समुद्र सूरि जी के सद्प्रयासों से जीरा (पंजाब) में पर्युषणों में सभी बूचड़खाने बंद रहे। ___13 फरवरी 1970 को पालीताणा में आ. समुद्र सूरि जी ने गिरिराज की मूल ढूंक में श्री विजयानंद सूरि जी (आत्माराम जी) की प्रतिमा प्रतिष्ठित कराई थी। उन्हीं की प्रेरणा से मुंबई में पायधुनी चौक का नाम 'विजय वल्लभ चौक' रखा गया। साधु-साध्वी जी के उत्थान को भी वे पूर्ण समर्पित रहे। उनकी निश्रा में बड़ौदा के जानीशेरी उपाश्रय में साध्वी सम्मेलन हुआ, जिसमें साध्वी भगवंतों की अध्ययन-अध्यापन व्यवस्था का विशेष अनुशीलन हुआ। गुरु वल्लभ के स्वप्न अनुरूप साधर्मिक भाईयों के उत्थान हेतु नालासोपारा (मुंबई) में साधर्मिक बंधुओं के निःशुल्क आवास हेतु ‘आत्म-वल्लभ नगर' का निर्माण भी उनकी प्रेरणा से हुआ। आचार्य श्री समुद्र सूरि जी ने मानव कल्याण हेतु विभिन्न संस्थाओं के गठन की प्रेरणा दी, जिसके सुप्रभाव से अनेकों जीव लाभान्वित हुए - जगरावां में श्री आत्मवल्लभ जैन औषधालय (वि.सं. 2022) - बीकानेर में विजय वल्लभ रिलीफ सोसायटी (वि.सं. 2025) - बड़ौदा में विजय वल्लभ अस्पताल (वि.सं. 2029) -- पाली में आत्म वल्लभ समुद्र जैन विहार (वि.सं. 2031) - पंजाब में लार्ड महावीर फाउंडेशन एवं महावीर जैन संघ इत्यादि। तप की तेजस्विता उनके मुखमंडल पर प्रत्यक्ष होती थी। वृद्धावस्था में भी वे अनेकों अभिग्रहों का पालन करते थे। जैसे- प्रत्येक अष्टमी, चतुर्दशी तथा सुदी पंचमी को मौन साधना, गोचरी में 11 द्रव्यों से अधिक नहीं वापरना, शक्कर, गुड़, खांड आदि मिष्ठान्न का पूर्ण त्याग, अष्टमी चौदस को उपवास एवं अन्य तिथि त्याग, भूल से भी किसी को निष्प्रयोजन कटुवचन कहने पर एकासणा, इत्यादि अनेकों नियमों-अभिग्रहों का वे तन मन जीवनांत तक पालन करते रहे। महावीर पाट परम्परा 281
SR No.002464
Book TitleMahavir Pat Parampara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChidanandvijay
PublisherVijayvallabh Sadhna Kendra
Publication Year2016
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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