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- जौहरी बाजार (मुंबई) - वि.सं. 1992 - खंभात (गुजरात) - वि.सं. 1994 - सढौरा (पंजाब) - वि.सं. 1995 - बड़ौत (उत्तर प्रदेश) - वि.सं. 1995 - रायकोट (पंजाब) - वि.सं. 2000 - सादड़ी (राजस्थान) - वि.सं. 2005 - बीजापुर (राजस्थान) - वि.सं. 2006 - महावीर जैन विद्यालय (मुंबई) आदि
पालीताणा तीर्थ पर शांतिमूर्ति हँसविजय जी द्वारा प्रतिष्ठित गुरु आत्म (विजयानंद सूरि जी) की पंचधातु की प्रतिमा की पुनर्प्रतिष्ठा भी वि.सं. 2007 में गुरुवल्लभ के करकमलों से हुई। कालधर्म :
सन् 1953 में गुरु वल्लभ ने अपने प्रशिष्य समुद्र विजय जी को मुंबई में आचार्य पद प्रदान कर अपना पट्टधर घोषित किया। गुरु आत्म की आज्ञा स्वरूप पीली चादर को उन्होंने चालू रखा। उनका स्वास्थ्य शनैःशनैः मंद होने लगा। उनको भावना थी कि स्वास्थ्य अच्छा होते ही वे पुनः पंजाब पधारें, लेकिन कर्मगति का यह स्वीकार न था।
आसोज वदि 10, वि.सं. 2011 मंगलवार (23 सितंबर सन् 1954) रात्रि 2:32 मिनट पर पुष्य नक्षत्र में अर्हत् नामोच्चारण करते, सबको मौन आशीष देते हुए 84 वर्ष की आयुष्य में भायखला (मुंबई) में कालधर्म को प्राप्त हुए। उनकी अंतिम यात्रा में सभी धर्मो के लाखों लोग सम्मिलित जो उनके लोकगुरु होने का गौरव दर्शाती रही।
महावीर पाट परम्परा
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