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साहित्य रचना :
आचार्य विजय वल्लभ सूरि जी भक्तियोग में डूबे आशु कवि थे। वे जिस भी मंदिर में जाते, नए-नए स्तवनों की रचना कर देते। होई आनंद बहार रे, नज़र टुक मेहर की करके, पों में पर्व पजुसन है, इत्यादि शताधिक स्तवन-सज्झाय-स्तुति उनकी रचनाएं हैं जो 'वल्लभ काव्य सुधा' में संकलित हैं।
जैन भानु, दूंढकमतसमीक्षा, गप्पदीपिकासमीर, नवयुग निर्माता (गुरु आत्म का जीवन चरित्र) उनकी अनुपम कृतियां है। अनेकों पूजाओं की भी उन्होनें रचना की। 1) पंच परमेष्ठी पूजा
2) पंचतीर्थी पूजा 3) अष्टापद तीर्थ पूजा
4) आदिनाथ पंचकल्याणक पूजा 5) निन्यानवे प्रकारी पूजा 6) नंदीश्वर द्वीप पूजा 7) शांतिनाथ पंचकल्याणक पूजा 8) इक्कीस प्रकारी पूजा 9) ऋषिमण्डल पूजा
10) पार्श्वनाथ पंचकल्याणक पूजा 11) एकादश गणधर पूजा 12) द्वादश व्रत पूजा 13) महावीर पंचकल्याणक पूजा 14) विजयानंद सूरि पूजाष्टक
15) पंचज्ञान पूजा आदि प्रतिष्ठित जिनप्रतिमाएं :
गुरु वल्लभ ने अनेकों स्थानों पर जिनमंदिरों की प्रतिष्ठा की- जंडियाला गुरु (पंजाब) - वि.सं. 1957 - सूरत (गुजरात) - वि.सं. 1974 - समाना (पंजाब) - वि.सं. 1979 - लाहौर (पाकिस्तान) - वि.सं. 1981
बिनौली (उत्तर प्रदेश) - वि.सं. 1983 - अलवर (राजस्थान) - वि.सं. 1983 - चारूप, करचलिया (गुजरात) - वि.सं. 1985- अकोला (महाराष्ट्र) - वि.सं. 1988
महावीर पाट परम्परा
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