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________________ 69. पंन्यास श्रीमद् कीर्ति विजय जी गणि धर्म संस्कार कीर्ति प्रकाशित, भव्य आत्मोद्धार । धृतिमतियुक्त श्री कीर्ति विजय जी, नित् वंदन बारम्बार || अपने आचार एवं विचारों के प्रभाव से दिग्-दिगंत कीर्ति को प्राप्त पंन्यास कीर्ति विजय जी तपागच्छ की संवेगी परम्परा के 69 वें पट्टधर हुए । उनकी शारीरिक कान्ति, ज्ञान तेजस्विता एवं वाणी ओजस्विता से विविध क्षेत्रों में विचरण कर उन्होंने शासन की महती प्रभावना की । जन्म एवं दीक्षा : उनका जन्म वि.सं. 1816 में पालनपुर/खंभात के किन्हीं वीशा ओसवाल जाति के सुश्रावक के घर हुआ था। गृहस्थ अवस्था में उनका नाम कपूरचंद था। आत्मकल्याण की भावना से स्वयं को सर्जित कर 45 वर्ष की आयु में उन्होंने पालीताणा में पंन्यास रूप विजय जी के पास दीक्षा अंगीकार की एवं इनका नाम मुनि कीर्ति विजय रखा गया। शासन प्रभावना : संस्कारवान् होने से देशविरति से सर्वविरति में प्रवेश करने पर उनका साधु जीवन निर्मल रहा। वि.सं. 1880 का चातुर्मास उन्होंने अहमदाबाद की लुहार पोल में किया। तब उनके साथ कस्तूर विजय जी, उद्योत विजय जी, लक्ष्मी विजय जी, शांति विजय जी, चतुर विजय जी, लाभविजय जी, मणिविजय (दादा), मेघ विजयजी, मनोहर विजय जी, मोती विजय जी एवं वृद्धि विजय जी भी थे। रूप विजय जी के दाहिने हाथ के रूप में उन्होंने गुजरात, मारवाड़, मेवाड़ व मालवा में विचरण कर अनेक भव्यात्माओं को शासन के अनुरागी बनाया। इनका आयुष्य अल्प था । कीर्ति विजय जी के 15 शिष्य थे। कुछ इस प्रकार थेये अत्यंत तपस्वी थे। आयुष्य अल्प था। कस्तूर विजय जी 1) महावीर पाट परम्परा 256
SR No.002464
Book TitleMahavir Pat Parampara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChidanandvijay
PublisherVijayvallabh Sadhna Kendra
Publication Year2016
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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