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________________ देव सूरि जी, उपाध्याय कनक विजय जी तदुपरान्त राधनपुर - पालनपुर होते हुए ईडर पधारे। राजा कल्याणमल ने नगरोत्सव करके प्रवेश कराया। राजा का मंत्री सेठ सहजु था। उसने कनक विजय म. की बुद्धि देखी तो स्तब्ध रह गया। मंत्री सहजुशाह ने विजयदेव सूरि जी से कहा - "गुरुदेव कुछ लाभ दो!" आचार्यश्री ने पूछा - "क्या लाभ?" मंत्री ने निवेदन किया कि कनक विजय जी जैसे सुविहित संयमी, विद्वान् साधु को सूरि पद पर स्थापित कीजिए उस समय विजयदेवसूरि जी ने कहा जब समय आएगा देखा जाएगा। विजयदेवसूरिजी ने उसके बाद गहन चिंतन किया एवं मंत्री का कथन यथार्थ पाया। कनक विजय जी शास्त्रों के ज्ञाता, प्रवचन प्रभावक और संयम के धनी थे। अतः सूरि पद के पूर्णतः योग्य थे। वैशाख सुदि 6 वि. सं. 1682 को ईडर में विशाल जनमेदिनी के मध्य उन्हें आचार्य पद से अलंकृत किया गया तथा उनका नूतन नाम 'विजय सिंह सूरि' ऐसा प्रदान किया गया। जीवन क्षणभंगुर है। आयुष्य कब समाप्त हो, पता नहीं। यही विचारते हुए पौष सुदि 6 वि.सं. 1684 में जालोर के मंत्री जयमल के सहयोग से विजय सिंह सूरि जी को संपूर्ण गच्छ की अनुज्ञा प्रदान की। विजयदेवसूरि जी और विजय सिंह सूरि जी कभी साथ-साथ विचरते तो कभी जुदा-जुदा । विजय सिंह सूरि जी ने भी जिन शासन की महती प्रभावना की । मेवाड़ के राणा जगत्सिंह को उपदेश देकर उन्होंने उसे जैन धर्मानुयायी बनाया एवं वरकाणा तीर्थ की जकात माफ कराई। उसे प्रेरणा देकर चौदस के दिन शिकार संघ बंद बरवाए। इत्यादि जीवदया के काम कराए। उन्होंने जैने तीर्थों में उपदेश द्वारा सत्रह भेदी पूजा का प्रचार करवाया। आल्हणपुर से आए हुए श्री महेश दास के मंत्री श्री सुगुण ने सुवर्णमुद्राओं से पूजन कर किशनगढ़ में विराजित विजय सिंह सूरि जी को वंदन किया। मेड़ता, माल्यपुर, बूंदी, चतलेर, जैतारण, स्वर्णगिरि, पाटण, अहमदाबाद आदि अनेक स्थानों पर मेवाड़ - मारवाड़ - गुजरात के विविध प्रांतों में विचरण कर शासन सेवा की। संघ व्यवस्थाः आचार्य विजय सिंह सूरीश्वर जी म. के पंन्यास सत्य विजय जी आदि 17 प्रमुख शिष्य थे। ईडरगढ़ में संवत् 1705 में प्रतिष्ठा के समय उन्होंने 64 विद्वानों को पण्डित पद पर प्रतिष्ठित किया। महावीर पाट परम्परा 230
SR No.002464
Book TitleMahavir Pat Parampara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChidanandvijay
PublisherVijayvallabh Sadhna Kendra
Publication Year2016
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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