SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 258
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 60. आचार्य श्रीमद् विजय देव सूरीश्वर जी दुष्कर तपस्वी महातपा, जहांगीर अनुसार। देवसूरि जी दिव्य विभूति, नित् वंदन बारम्बार॥ धर्म प्रचार के साथ-साथ जिनका तपोमय जीवन जनता के लिए विशेष आकर्षण का विषय था, ऐसे भगवान् महावीर स्वामी की 60 वीं पाट-परम्परा पर सुशोभित विजयदेव सूरि जी म. सा. ने जिनशासन की अभूतपूर्व प्रभावना की। अपने गच्छ का अन्तरंग विरोध होने पर भी उनकी व्यापक विचारधारा ने उनको जनप्रिय बनाया। जन्म एवं दीक्षा : विजय देव सूरि जी का जन्म गुजरात प्रदेशान्तर्गत इलादुर्ग (ईडर) गाँव निवासी महाजन परिवार में पौष शुक्ला 13 वि.सं. 1634 के दिन उत्तम नक्षत्रों के योग में हुआ। उनके पिता का नाम 'स्थिर' एवं माता का नाम 'रुपादेवी' था। माता-पिता ने शिशु का नाम वासकुमार (वासदेव) रखा। वासदेव को माता-पिता के धार्मिक विचारों से प्रेरणा मिलती रहती जिससे उसका मन उत्तरोत्तर त्याग की ओर झुकता गया। माता रुपा देवी और बालक वासकुमार ने दीक्षा लेने का निश्चय किया। माघ शुक्ला 10 वि.सं. 1643 के शुभ दिन अहमदाबाद के हाजा पटेल की पोल में विजय सेन सूरि जी के हाथों से भागवती दीक्षा सम्पन्न हुई। मुनि जीवन में इनका नाम 'मुनि विद्या विजय' रखा गया नाम के अनुरूप वे सदा विद्या अर्जन में तत्पर रहते एवं शीघ्र ही 6,36,000 श्लोक उन्होंने कण्ठस्थ किए। शासन प्रभावनाः इनकी योग्यता को देखते हुए विजय सैन सूरि जी ने मार्गशीर्ष कृष्णा 5 वि.सं. 1655 के दिन खंभात में पण्डित पद प्रदान किया, वैशाख शुकला 4 वि.सं. 1656 के दिन सूरिमंत्र पूर्वक सूरि (आचार्य) पद पर प्रतिष्ठित किया गया। पाटण में पौष कृष्णा 6 वि.सं. 1658 के दिन से सूरि जी ने इन्हें गच्छ की अनुज्ञा प्रदान की तथा ये अपने आचार्य पर्याय के नाम 'विजय देव सूरि' के नाम से विख्यात हुए। वन्दन महोत्सव की व्यवस्था श्रावक सहस्त्रवीर ने हर्षोल्लास - पूर्वक की। महावीर पाट परम्परा 224
SR No.002464
Book TitleMahavir Pat Parampara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChidanandvijay
PublisherVijayvallabh Sadhna Kendra
Publication Year2016
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy