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के उतने ही विरोधी थे जितने उनके पूर्वगुरु थे। उन्होंने अपने गच्छ की अनुज्ञा पाटण में वि. सं. 1658 में पौष कृष्णा 6 के दिन अपने विद्वान शिष्य विजयदेव सूरि जी को दी। प्रतिष्ठित जिनप्रतिमाएँ:
आचार्य विजय सेन सूरि जी ने चार लाख जिन प्रतिमाओं की अंजनशलाका - प्रतिष्ठाएँ की, करवाई। उनके जीवन वृत्तांत से ज्ञात होता है कि उन्होंने गंधार बंदर में इन्द्रजी सेठ के घर महावीर स्वामी की प्रतिमा, धनाई श्राविका के घर में प्रतिष्ठा, गंधार में ही चिंतामणि पार्श्वनाथ तथा महावीर स्वामी जी की प्रतिमा विराजमान की । खंभात में रजिया-रजिया के घर में प्रतिष्ठा तथा 1654 में अहमदाबाद में जमीन से निकली विजय चिंतामणि पार्श्वनाथ की प्रतिमा शकन्दरपुर में स्थापित की। अहमदपुर, राजनगर, राधनपुर, स्तंभन तीर्थ, अकबरपुर, शत्रुंजय, नारंगपुर, राणकपुर आदि स्थलों पर आचार्यश्री द्वारा प्रतिष्ठाएँ कराने का वर्णन आता है।
आचार्यश्री द्वारा प्रतिष्ठित प्रतिमाएँ आज भी अनेक जगह यत्र-तत्र प्राप्त होती हैं। कुछ इस प्रकार
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चंद्रप्रभ जिनालय, जानीसेरी ( बड़ौदा ) में प्राप्त विमलनाथ जी की पाषाण की प्रतिमा (लेख अनुसार ज्येष्ठ सुदि 2 सोमवार वि. सं. 1643 में प्रतिष्ठित ) ।
नौघरा मंदिर, चांदनी चौक, दिल्ली में प्राप्त शीतलनाथ जी की प्रतिमा (लेख के अनुसार फाल्गुन सुदि 11, गुरुवार, वि.सं. 1643 में प्रतिष्ठित ) ।
शान्तिनाथ जिनालय, पादरा एवं हिंदविजय प्रेस वालों का घर देरासर, बड़ोदरा में प्राप्त श्री शान्तिनाथ जी की धातु प्रतिमा (लेखानुसार ज्येष्ठ सुदि 12 वि.सं. 1644 में प्रतिष्ठित ) ।
पार्श्वनाथ जिनालय, मेड़ता सिटी में प्राप्त शीतलनाथ जी, अरनाथ जी, महावीर स्वामी जी की पाषाण प्रतिमा (लेखानुसार वैशाख सुदि 4 बुधवार वि. सं. 1653 में प्रतिष्ठित)।
अजमेर के संग्रहालय में प्राप्त सुमतिनाथ जी की पाषाण की प्रतिमा (लेख अनुसार माघ सुदि 12, बुधवार वि. सं. 1654 में प्रतिष्ठित ) ।
शान्तिनाथ जालय, किशनगढ़ में प्राप्त कुंथुनाथ जी की धातु की प्रतिमा (लेख के
महावीर पाट परम्परा
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