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________________ 3. अकबर बादशाह द्वारा गठित धर्म चर्चा सभा के 140 सदस्य थे जो पाँच श्रेणी में विभक्त थे। विजय हीर सूरि जी का नाम प्रथम श्रेणी में था। बादशाह के हृदय में मूर्तिपूजा का विरोध था एवं जैनधर्म की नास्तिकवादी छवि बनी हुई थी हीर सूरि जी ने उसका पूर्णतल से निवारण किया। बादशाह को यही लगता था हीर सूरि जी मात्र जैनों के गुरु नहीं, संपूर्ण जगत् के गुरु है। अतः संवत् 1640 में उन्होंने आचार्यश्री को 'जगद्गुरु' का विरुद दिया। इस प्रकार बादशाह अकबर हीर सूरि जी का परम भक्त बना एवं अनेक कार्य किए। बादशाह धर्म से विमुख ना हो, इस हितचिंतन के भाव से स्वयं उस क्षेत्र से विहार कर जाने पर भी अपने शिष्यों-प्रशिष्यों को उस क्षेत्र में विचरण करने की आज्ञा दी। साहित्य रचना : विजय हीर सूरि जी अत्यंत उत्तम कोटि के विद्वान थे। किंवदन्ती अनुसार उन्होंने शताधिक ग्रंथ लिखे थे किंतु उनमें से आज कुछ ही उपलब्ध हैं। वे हैं: - श्री शान्तिनाथ रास ; श्री द्वादश जिन विचार ; मृगावती चरित्र (प्रभातियु) ; अंतरिक्ष पार्श्वनाथ स्तव ; जम्बूद्वीप-प्रज्ञप्ति पर संस्कृत टीका संघ व्यवस्थाः उस समय 2,500 साधु एवं 3,000 साध्वी जी इनकी आज्ञा में थे। एक सौ साठ (160) व्यक्तियों को दीक्षा, 160 को पण्डित पद एवं 8 को उपाध्याय पद उन्होंने प्रदान किया। राजकीय सम्मान प्राप्त होने पर उनमें तिलमात्र भी शिथिलाचार नहीं आया एवं न ही उन्होंने ऐसी भावना का संघ में संचार होने दिया। एक बार श्रावकों ने अहमदाबाद में पूज्य गुरुदेव के सम्मान में उनके बैठने के लिए विशिष्ट गोखला बनाया। श्रावकों ने सूरि जी को कहा कि आप बैठिए तो सूरि जी ने कहा कि चूंकि यह हमारे निमित्त बनाया है, इस पर बैठना मुझे नहीं कल्पता। इसी प्रकार की सख्त समाचारी का पालन उनके गच्छ में किया जाता था। अहमदाबाद में लुकामत (स्थानकवासी) के आचार्य श्री मेघजी ने अपने 25 मुनियों सहित जैनागमों की सत्यता जानकर हीर सूरि जी के पास दीक्षा ली। आज्ञानुवर्ती सभी साधु-साध्वी महावीर पाट परम्परा 216
SR No.002464
Book TitleMahavir Pat Parampara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChidanandvijay
PublisherVijayvallabh Sadhna Kendra
Publication Year2016
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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