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________________ 57. आचार्य श्रीमद् विजय दान सूरीश्वर जी लोकोद्धारक दान सूरि जी, असंयम बहिष्कार। शासन प्रभावना शक्ति धनी, नित् वंदन बारंबार॥ आचार्य आनंदविमल सूरीश्वर जी म. के कालधर्म पश्चात् गच्छ में सर्वाधिक वडिल एवं योग्य होने से गच्छ का कार्यभार आचार्य दान सूरीश्वर जी के कंधों पर आया एवं वे प्रभु महावीर की जाज्वल्यमान पाट परम्परा के 57वें क्रम पर विभूषित हुए। संघ का योग-क्षेम कर कुशल नेतृत्त्व उन्होंने प्रदान किया एवं इनसे तपागच्छ की 'विजय' शाखा का प्रादुर्भाव हुआ। जन्म एवं दीक्षा : इनका जन्म गुजरात प्रदेश में अहमदाबाद के पास जामला नामक गाँव में वि.सं. 1553 में हुआ। उनके पिता करमिया गौत्र के शा. जगमाल (भामोशा वीशा ओसवाल) एवं माता सूर्यादेवी थी। इनके 3 भाई थे, 1 बहन और विजय व लक्ष्मण नामक 2 भानजे थे। पूरा परिवार धर्म संस्कारों से परिपूर्ण था। नौ वर्ष की अल्पायु में वि.सं. 1562 में दीक्षा ग्रहण की एवं उनका नाम 'मुनि उदयधर्म' रखा गया। गुरुदेवों की निश्रा में रहते हुए उन्होंने अनेकों आगमों, ग्रंथों, शास्त्रों का तलस्पर्शी अध्ययन किया। शासन प्रभावना : मुनि उदयधर्म का तन-मन गुरुचरणों में समर्पित था। एक बार गुर्वाज्ञा से वे 100 साध भगवन्तों की गोचरी लाए। सभी ने गोचरी वापर ली लेकिन फिर भी 3 लोगों जितनी गोचरी बच गई। आचार्य आनंदविमल सूरि जी बची गोचरी को परठना नहीं चाहते थे क्योंकि उसे फेंकने से जीव हिंसा की संभावना रहती है। आचार्यश्री जी ने सभी 100 साधुओं को कहा कि जो भी साधु इस बचे हुए आहार को वापरेगा, उसे मैं मनपसंद काम्बली दूंगा। सभी साध गोचरी कर चुके थे। अतः किसी ने यह बात स्वीकार नहीं की। ___ तब केवल मुनि उदयधर्म जी आगे आए और वह बची हुई गोचरी खाई। अगले दिन उन्होंने अधिक गोचरी वापरने के प्रायश्चित्त स्वरूप 3 उपवास का पच्चक्खाण लिया। चौथे दिन महावीर पाट परम्परा 207
SR No.002464
Book TitleMahavir Pat Parampara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChidanandvijay
PublisherVijayvallabh Sadhna Kendra
Publication Year2016
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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