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11) सेठ चांदमल का देरासर, जैसलमेर में प्राप्त सुमतिनाथ जी की धातु की पंचतीर्थी मूर्ति
(लेखानुसार वैशाख सुदि 5 बुधवार वि.सं. 1537 में प्रतिष्ठित) 12) आदिनाथ जिनालय, नागपुर में प्राप्त आदिनाथ जी की धातु की चौबीसी प्रतिमा
(लेखानुसार माघ सुदि 10 रविवार वि.सं. 1542 में प्रतिष्ठित)
अहमदाबाद, थराद, पाटण खंभात, बीकानेर, किशनगढ़, कड़ी, ऊँझा, नागौर, पाटड़ी, बड़ौदा, मुर्शिदाबाद, रतलाम, अमरावती, जयपुर, अजमेर, ईडर, नदियाड़, छाणी, खेड़ा, माणसा, उदयपुर, सैलाना, लखनऊ, मंडार, वीसनगर, कोटा, मुंबई, मालपुरा, दाहोद, सवाई माधोपुर, जामनगर, महिमापुर, बीजापुर आदि सैंकड़ों जगह अच्छी मात्रा में लक्ष्मीसागर सूरि जी के अभिलेख वाली प्रतिमाएं प्राप्त होती हैं। कालधर्म :
जिनशासन की सर्वत्र जय-जयघोष करते हुए विशुद्ध संयम की परिपालना करते हुए 83 वर्ष की आयु में समाधिपूर्वक वि.सं. 1547 में उनका कालधर्म हुआ। गच्छ की सुंदर व्यवस्था के सर्जन एवं गच्छ भेद का निवारण कर एकता का शंखनाद कर लक्ष्मीसागर सूरि जी का नाम अत्यंत आदर के साथ लिया जाता था। उनके देवलोकगमन से श्रीसंघ से मानो वृक्ष की छाया विहीन हो गई। उनके पट्ट पर सर्वसहमति से पूज्य आचार्य सुमतिसाधु सूरि जी को स्थापित किया गया।
महावीर पाट परम्परा
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