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आचार्य लक्ष्मीसागर सूरि जी ने शताधिक स्थानों पर सहस्त्राधिक जिनप्रतिमाओं की अंजनशलाका-प्राणप्रतिष्ठा कराई। आज भी सैंकड़ों स्थानों पर तीर्थंकरों की प्रतिमाएं प्राप्त होती हैं, जिनकी स्थापना आचार्यश्री जी ने कराई थी तथा काल के प्रभाव से उनका मूल प्रतिष्ठा स्थान ज्ञात नहीं । वि.सं. 1513 से लेकर 1542 तक प्रतिष्ठित प्राप्त प्रतिमाओं में से कुछ इस प्रकार है
1) नौघरे का मंदिर, चांदनी चौक, दिल्ली में प्राप्त शांतिनाथ जी की प्रतिमा (लेखानुसार वैशाख सुदि 8, वि.सं. 1517 में प्रतिष्ठित )
2)
3)
जैन मंदिर, गांभू में प्राप्त पद्मप्रभ स्वामी जी की धातु की प्रतिमा (लेखानुसार ज्येष्ठ सुदि. 3, शनिवार वि. सं. 1519 में प्रतिष्ठित )
5)
6)
7)
8)
आदिनाथ जिनालय, सेलवाड़ा गाँव में प्राप्त नमिनाथ जी की धातु की पंचतीर्थी प्रतिमा (लेखानुसार फाल्गुन वदि 5, वि.सं. 1518 में प्रतिष्ठित )
9)
श्री आदिनाथ जिनालय, पूणे में प्राप्त सुमतिनाथ जी की धातु की प्रतिमा (लेखानुसार वैशाख सुदि 10 रविवार वि. सं. 1521 में प्रतिष्ठित)
नेमिनाथ जी का पंचायती बड़ा मंदिर, अजीमगंज में प्राप्त पार्श्वनाथ जी की प्रतिमा (लेखानुसार वैशाख वदि 4 गुरुवार वि. सं. 1523 में प्रतिष्ठित )
पटना के जिनमंदिर में प्राप्त वासुपूज्य स्वामी की प्रतिमा (लेखानुसार वैशाख सुदि 13 वि.सं. 1524 में प्रतिष्ठित )
नेमिनाथ जिनालय, आगरा व संभवनाथ देरासर, पादरा में प्राप्त सुपार्श्वनाथ जी की पंचतीर्थी प्रतिमा (लेखानुसार वि.सं. 1525 में प्रतिष्ठित )
कुंथुनाथ प्रासाद, अचलगढ़ में प्राप्त श्री कुंथुनाथ जी की जिनप्रतिमा (लेखानुसार वैशाख सुदि 8 वि.सं. 1527 में प्रतिष्ठित )
आदिनाथ जिनालय, वासा में प्राप्त वासुपूज्य जी, मुनिसुव्रत स्वामी, आदिनाथ जी की प्रतिमाएं (लेखानुसार कार्तिक सुदि 9 वि.सं. 1532 में प्रतिष्ठित )
10) जैन मंदिर, वजाणा एवं बालावसही, शत्रुंजय में प्राप्त सुमतिनाथ जी की धातुप्रतिमा (लेखानुसार पौष वदि 9 वि.सं. 1535 में प्रतिष्ठित)
महावीर पाट परम्परा
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