________________
5) बड़ा जैन मंदिर, लीम्बड़ी व आदिनाथ जिनालय, वासा में प्राप्त चंद्रप्रभ जी, संभवनाथ
जी की क्रमशः प्रतिमाएं (लेखानुसार वैशाख सुदि 3 वि.सं. 1508 में प्रतिष्ठित) पार्श्वनाथ देरासर, साणंद में प्राप्त पार्श्वनाथ जी की धातु प्रतिमा (लेखानुसार ज्येष्ठ वदि
5 वि.सं. 1509 में प्रतिष्ठित) 7) बालावसही, शत्रुजय में प्राप्त आदिनाथ (ऋषभदेव) जी की प्रतिमा (लेखानुसार वैशाख
सुदि 2 वि.सं. 1510 में प्रतिष्ठित) 8) पार्श्वनाथ जिनालय, लश्कर, ग्वालियर में प्राप्त संभवनाथ जी की प्रतिमा (लेख के
अनुसार फाल्गुन सुदि 9 रविवार वि.सं. 1511 में प्रतिष्ठित) आदिनाथ जिनालय, पूना में प्राप्त मुनिसुव्रत स्वामी जी की धातु की प्रतिमा (लेख अनुसार
पौष सुदि 10 बुधवार वि.सं. 1513 में प्रतिष्ठित) कालधर्म :
54 वर्ष का उग्र संयम पर्याय पालते हुए स्थान-स्थान पर जिनशासन की महती प्रभावना करते हुए पूज्यश्री जी का वि.सं. 1517 में कालधर्म हुआ। वे अत्यंत मधुर एवं कठोर चारित्र के पालक थे। उनके देहावसान से जैन संघ में शोक की लहर दौड़ पड़ी। इनकी पाट पर विराजमान होकर आचार्य लक्ष्मीसागर सूरि जी ने तपागच्छ का नेतृत्त्व स्वीकार किया।
.
.
.
.
.
महावीर पाट परम्परा
183