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________________ 11) अर्बुदाद्रिमंडन पार्श्वनेमि-स्तवन 12) चतुर्विशति जिन स्तवन आचार्यश्री जी की भाँति उनके शिष्य भी साहित्य रचना में कुशल थे। उनकी उपस्थिति में ही रचे गए उनके शिष्य सोमदेव विजय जी कृत कथामहोदधि, सिद्धांत स्तव आदि ग्रंथ प्राप्त होते हैं इत्यादि। श्राद्धप्रतिक्रमण वृत्ति, श्राद्धविधि वृत्ति एवं आचार प्रदीप अत्यंत महत्त्वपूर्ण ग्रंथ है एवं आज भी विस्तृत रूप से उपयोग किए जाते हैं। श्राद्धविधि की टीका की प्रशस्ति में उन्होंने प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से उपकारी अनेकों गुरुदेवों का नामोल्लेख किया है एवं कहा है एषां श्रीसुगुरुणां, प्रसादतः षट्खतिथिमिते (1506 ) वषे। . श्राद्धविधिसूत्रवृत्तिं, व्यधित श्रीरत्नशेखरः सूरिः॥ अर्थात् - यह कृति उन्हीं सुगुरुदेवों के आशीष रूपी प्रसाद का फल है। यह उनकी लघुता प्रदर्शित करता है। लुका मत उत्पत्ति : आचार्य रत्नशेखर सूरि जी के समय में वि.सं. 1508 में लोंकाशाह द्वारा जिनप्रतिमा का विरोधी 'लुकामत' प्रवृत्त हुआ। लोकाशाह अहमदाबाद में लहिया (नकल नवीज़) के रूप में नाणावटी का तथा लिखने का धंधा करता था। ज्ञानजी नामक यति के पास उपाश्रय में शास्त्रों के नकल कर आजीविका चलाता था। वह आगमों की दो-दों नकलें करके एक यति जी को देता था एवं एक स्वयं रखता था। एक बार उसने एक ग्रंथ की लिखाई में 7 पन्नों में गड़बड़ की और संयोगवश उसकी आजीविका के साढ़े सात दोकड़े देने शेष रह गए। लोंकाशाह और श्रावकों के बीच आपस में तकरार हो गई। यतियों ने कहा, पैसे देने का कार्य श्रावकों का है। लोकाशाह अत्यंत क्रुद्ध हुआ। साधुओं की निंदा करते हुए अपने अपमान का कड़वा घूट पीकर वह बाजार में एक हाट पर आकर बैठ गया। एक मुसलमान मित्र से उसकी चर्चा हुई, जिससे लोंकाशाह की बुद्धि में विकार हुआ। अतः उसने प्रतिमा पूजन का, हिंसक क्रिया काण्डों का, यतिओं के अनुचित आचरण का विरोध चालू किया। उसने जो आगमों का लेखन खुद किया था, उसमें से मूर्तिपूजा के पाठ निकाल दिए तथा अन्य पाठों के मनः कल्पित अर्थ किए। जिन क्षेत्रों में जैन साधु-साध्वी जी का विचरण नहीं हो पा रहा था, उन क्षेत्रों में अनेकों लोगों को मूर्तिपूजा के विमुख बनाया। महावीर पाट परम्परा 181
SR No.002464
Book TitleMahavir Pat Parampara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChidanandvijay
PublisherVijayvallabh Sadhna Kendra
Publication Year2016
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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