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61) उक्क देश महावीर स्वामी 62) चारूप तीर्थ शांतिनाथ जी 63) द्रोणात नेमिनाथ जी 64) रत्नपुर (रतलाम) नेमिनाथ जी 65) अर्बुदपुर अजितनाथ जी 66) कोरटा
मल्लिनाथ जी 67) ढोर समंत देश पार्श्वनाथ जी 68) पाटण
पार्श्वनाथ जी 69) शत्रुजय तीर्थ शांतिनाथ जी 70) तारापुर
आदिनाथ जी 71) वर्धमानपुर मुनिसुव्रत स्वामी 72) वटपद्र
आदिनाथ जी 73) गोगपुर (घोघा) आदिनाथ जी 74) पिरच्छन
चंद्रप्रभ स्वामी 75) विक्कन नगर नेमिनाथ जी 76) चेलकपुर
आदिनाथ जी कालधर्म :
गुजरात, मालवा आदि क्षेत्रों में विहार करते हुए 63 वर्ष की आयु में वि.सं. 1373 में खंभात में कालधर्म को प्राप्त हुए। ऐसी अनुश्रुति है कि आचार्यश्री के स्वर्गवास पश्चात् जिस उपाश्रय में कालधर्म हुआ, वहाँ स्वर्ग का विमान लघु रूप में आया था, जिससे संभवतः वे सौधर्म देवलोक में सामानिक देव के रूप में उत्पन्न हुए, ऐसा प्रचलित हुआ। वि.सं. 1373 में ही अपने शिष्य-परमानंद और सोमतिलक को सूरि पद प्रदान किए व उसके 3 महीने पश्चात् ही स्वयं श्री चरणों में विलीन हुए। सोमप्रभ सूरिजी के पट्ट पर आचार्य सोमतिलक सूरि जी विराजित हुए।
• समकालीन प्रभावक आचार्य . आचार्य रत्नाकर सूरि जी :
वैराग्यरसपोषक सुप्रसिद्ध रचना – 'रत्नाकर पच्चीसी' के रचयिता आचार्य रत्नाकर सूरीश्वर जी वीर निर्वाण की 18वीं शताब्दी (विक्रम की 14वीं सदी) के महाप्रभावक आचार्य रहे। ___ गृहस्थावस्था में वे अत्यधिक धनवान् सेठ थे जिन्हें अपने एक अमूल्य रत्न से असीम राग था। आचार्य देवप्रभ सूरि जी के मार्मिक उपदेशों से घर-परिवार-व्यापार से उनका मोह टूट गया। उन्होंने उनके पास दीक्षा ले ली किंतु रत्न से अपना मोह वे त्याग नहीं सके। उन्होंने
महावीर पाट परम्परा
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