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________________ भामंडल आदि व आकाश में भी स्वयमेव आश्चर्यकारी घटनाएं घटित हुई जो निश्चित उनके उज्ज्वल भविष्य की सूचक बनी। . सोमप्रभ सूरि जी ज्योतिष के प्रकाण्ड विद्वान थे। इसी की सहायता से उन्होंने शासन रक्षा के महनीय कार्य किए। वि.सं. 1353 में उनका चातुर्मास भीमपल्ली (वर्तमान में डीसा के सन्निकट भीलड़ी गाँव) में था। बड़ी संख्या में जैनों की वहां बस्ती थे। भिन्न-भिन्न गच्छों के 11 जैनाचार्यो का चातुर्मास वहाँ था। उस साल कार्तिक के दो महीने थे। चातुर्मास दरम्यान एक रात सोमप्रभ सूरि जी ने आकाश में जैसे ही ग्रहों की चाल देखी, निमित्त शास्त्र के आधार से उन्हें ज्ञात हो गया कि थोड़े दिनों में भीलड़िया नगर का विनाश होने वाला है। अतः अधिक समय तक यहाँ रुकना उचित नहीं है। अन्य आचार्यों ने इनकी बात पर विश्वास नहीं किया। अतः प्रथम कार्तिक महीने की सुदी 14 को चातुर्मासिक प्रतिक्रमण कर सुदी 15 को उन्होंने अपने शिष्य समुदाय सहित भीलड़िया के विहार कर दिया। सभी साधु-साध्वियों सहित उन्होंने राधनपुर नगर बसाया। अन्य आचार्यों ने दूसरे कार्तिक मास में चातुर्मास पूर्ण करने का सोचा था, किंतु उससे पहले ही प्राकृतिक उपद्रवों के प्रभाव से भीमपल्ली नगर विनाश की ओर बढ़ गया एवं विहार न करने वाले आचार्यों को मुसीबत में उतरना पड़ा। सोमप्रभ सूरि जी के ज्ञान तथा चतुर्विध संघ का रक्षण करने के कारुण्य भाव पर सभी उनके प्रति नतमस्तक हुए। खरतरगच्छ के आचार्य जिनप्रभ सूरि जी के साथ इनकी प्रगाढ़ मैत्री थी। उनके साथ रहकर भी ज्योतिष एवं मंत्रविषयक ग्रंथों का अभ्यास करते थे। वि.सं. 1371 में समराशाह ने शत्रुजय महातीर्थ का 15वां उद्धार कराया था। आचार्य सोमप्रभ सूरि जी की भी उसमें खासी प्रेरणा.रही व उस अवसर पर वे अपने शिष्य समुदाय सहित सम्मिलित होकर ऐतिहासिक क्षण के साक्षी बने। साहित्य रचना : आचार्य सोमप्रभ जी द्वारा रचित कतिपय ग्रंथ आज उपलब्ध होते है। जैसे 1. यतिजीत-कल्पसूत्र, 2. अट्ठाईस यमक-स्तुतियाँ, 3. श्रीमच्छर्म-स्तोत्र (श्रीमद् धर्म स्तोत्र) 4. आराधना पयन्नो आदि संघ व्यवस्था : धर्मघोष सूरि जी वि.सं. 1357 में स्वर्गवासी हुए। उसी वर्ष आचार्य सोमप्रभ सूरि जी ने महावीर पाट परम्परा 154
SR No.002464
Book TitleMahavir Pat Parampara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChidanandvijay
PublisherVijayvallabh Sadhna Kendra
Publication Year2016
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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