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________________ 47. आचार्य श्रीमद् सोमप्रभ सूरीश्वर जी साहित्य-स्मारक-साधु त्रिवेणी, समकित स्थिर करनार। सूरि सम्राट आचार्य सोमप्रभ जी, नित् वंदन बारम्बार॥ सोमप्रभ सूरि जी नाम के अनेक आचार्य हुए हैं। शासनपति भगवान् महावीर की पाट परम्परा के 47वें पट्टधर सोमप्रभ सूरि जी महाज्ञानी एवं क्रियापरायण हुए। वे ज्योतिष शास्त्रों के पारगामी विद्वान थे एवं कई शासनप्रभावक शिष्यों को उन्होंने तैयार किया। आज दृष्टिगोचर अनेकों तीर्थ आचार्यश्री जी की ही अमूल्य देन हैं। जन्म एवं दीक्षा: __इनका जन्म वि.सं. 1310 में पोरवाल वंशीय परिवार में हुआ था एवं 11 वर्ष की आयु में हृदय में वैराग्य के बीज अंकुरित होने से वि.सं. 1310 में हुआ में धर्मघोष सूरि जी के परिवार में दीक्षा ग्रहण की। अल्प समय में ही अहर्निश ज्ञान साधना कर वे प्रकाण्ड विद्वान बन गए किंतु अभिमान से सदा कोसों दूर रहे। शासन प्रभावना : __अपनी पात्रता के बल पर मात्र 22 वर्ष की आयु में वि.सं. 1322 में उन्हें आचार्य पद प्रदान किया गया एवं नाम - 'आचार्य सोमप्रभ सूरि' रखा गया। चारित्र पालन में भी अतिविशुद्ध परायण थे। गुरु धर्मघोष सूरि जी ने इनको योग्य मानकर एक अति प्रभावक मंत्रगर्भित पुस्तिका प्रदान की और कहा - "यह मंत्र शास्त्र की अत्यंत विशिष्ट पुस्तिका है। मेरे अलावा दूसरा कोई इसके बारे में नहीं जानता। यह पुस्तक योग्य हाथों में ही जानी चाहिए।" किंतु सोमप्रभ सूरि जी लघुता के धनी एवं भविष्यदर्शी आचार्य थे। उन्होंने यह पुस्तिका स्वीकार नहीं की एवं योग्य पात्र के अभाव में उस शास्त्र को जलशरण करवाया, ऐसी उनमें लघुता एवं दूरदर्शिता थी। __इन्हें संपूर्ण आचारांग, स्थानांग आदि 11 अंग कंठस्थ थे एवं वे नित्य उनका स्वाध्याय करते थे। चित्तौड़ में ब्राह्मणों की सभा में मिथ्यात्व के अंधकार को दूर कर सम्यकत्व का प्रकाश किया तथा विजयी बने। ग्रंथों के अनुसार जब वे चित्तौड़गढ़ में थे, तब उनके ऊपर प्रभाछत्र, महावीर पाट परम्परा 153
SR No.002464
Book TitleMahavir Pat Parampara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChidanandvijay
PublisherVijayvallabh Sadhna Kendra
Publication Year2016
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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