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________________ श्लोक मलयगिरि - तीनों ने अंबादेवी की सहायता से सिद्धचक्र यंत्र की विशिष्ट आराधना की। सिद्धचक्र के अधिष्ठायक 'विमलेश्वर' देव ने तीनों से उनके उद्देश्य का वरदान माँगने का निवेदन किया। उस समय आचार्य मलयगिरि ने जैन आगमों व ग्रंथों की सुलभ बोधि हेतु टीका साहित्य रचने में देव की अनुकूलता माँगी। आचार्य मलयगिरि जी की टीकाएं आत्मस्पर्शी व व्याख्यानात्मक हैं। हेमचन्द्राचार्य जी के वैदुष्य का भी उनके जीवन पर प्रभाव रहा। उन्होंने 25 से अधिक सुविशाल श्लोक प्रमाण टीका साहित्य की रचना की, जिनमें निम्न मुख्य हैंवृत्ति (टीका) श्लोक वत्ति (टीका) 1. भगवती सूत्र द्वितीयशतक वृत्ति 3750 2. जीवाभिगम टीका 13,000 3. राजप्रश्नीय सूत्र वृत्ति 3700 4. प्रज्ञापना सूत्र टीका 16,000 5. चन्द्रप्रज्ञप्ति सूत्र वृत्ति 9500 6. सूर्यप्रज्ञप्ति सूत्र टीका. 9500 . 7. नन्दीसूत्र वृत्ति 7732 8. व्यवहार सूत्र टीका 33625 9. बृहत्कल्पपीठिका वृत्ति 4600 10. आवश्यक सूत्र टीका . 22,000 11. पिण्डनियुक्ति वृत्ति 6700 12. ज्योतिषकरण्डक टीका 5000 13. धर्मसंग्रहणी वृत्ति 10,000 14. कर्मप्रकृति टीका 8000 15. पंचसंग्रहणी वृत्ति 18,500 16. षडशीति टीका . 2000 17. सप्ततिका वृत्ति 3780 18. बृहत्संग्रहणी टीका 5000 19. बृहत्क्षेत्रसमास वृत्ति 9500. 20. जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति टीका - 21. ओघनियुक्ति वृत्ति 22. तत्त्वार्थाधिगम टीका 23. धर्मसारप्रकरण वृत्ति 24. शब्दानुशासन टीका 5000 25. मुष्टि व्याकरण 26. देशीनाममाला लगभग 2 लाख श्लोकों से अधिक उनकी रचनाएं हुई। टीका साहित्य द्वारा श्रुतज्ञान की परम्परा को दीर्घजीवी बनाने में आचार्य मलयगिरि का महत्त्वपूर्ण योगदान है। महावीर पाट परम्परा 134
SR No.002464
Book TitleMahavir Pat Parampara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChidanandvijay
PublisherVijayvallabh Sadhna Kendra
Publication Year2016
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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