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________________ एक श्रावक ने वि.सं. 1149 में प्रतिष्ठा कराई जिसमें आचार्य मुनिचंद्र सूरि, उनके गुरुभाई आचार्य चन्द्रप्रभ सूरि इत्यादि आचार्य विद्यमान थे। मुनिचंद्र सूरि जी ने प्रतिष्ठा के सारे कार्य किए। आचार्य चंद्रप्रभ को उनकी कई बातों से अपना अपमान लगा। अतः पूनम के दिन उन्होंने नई प्ररूपणाएं चालू की। उनका मत-पूनमिया मत कहलाया। आचार्य चंद्रप्रभ जी ने दर्शनशुद्धि ओर प्रमेयरत्नकोश ग्रंथों की रचना की। अतः इस मत के अनुयायियों को प्रतिबोध देने हेतु आचार्य मुनिचंद्र सूरि जी ने पाक्षिक सप्ततिका (आवश्यक सत्तरी) नामक ग्रंथ बनाकर उन्मार्ग का उन्मूलन व सन्मार्ग का संस्थापन किया। कालक्रम से पूनमिया मत विलुप्त हो गया। आचार्य मुनिचंद्र सूरि जी शान्त, त्यागी, ज्ञानी, सत्यनिष्ठ, निर्भीक, निर्दोष वसति और आहार के गवेषक तथा श्रीसंघ के माननीय विद्वान थे। बड़गच्छ के संपूर्ण साधु-साध्वी उन्हें अपना आधार स्तंभ मानते थे। शासक प्रभावना के अनेक कार्य उनकी अध्यक्षता में सम्पन्न हुए। साहित्य रचना : मुनिचंद्र सूरि जी संस्कृत व प्राकृत भाषा के अधिकृत विद्वान थे। अनेक स्तवन, ग्रंथों की टीकाएं, प्रवचन, प्रश्नोत्तर आदि शैली में उनकी रचनाएं प्राप्त होती हैं। 1) प्राभातिक स्तुति वसन्ततिलका छन्द, श्लोक 9 अंगुलसत्तरि स्वोपज्ञ वृत्ति सहित, गाथा 70 वनस्पति सत्तरि गाथा 70 आवश्यक पाक्षिक सत्तरि गाथा 70 उपदेश पंचाशिका गाथा 50 मोक्षोपदेश पंचाशक गाथा 51 उपदेश पंशवीशिका गाथा 25, दया आदि का स्वरूप विषय निंदा कुलक गाथा 25 सामान्य गुणोपदेश कुलक गाथा 25 अनुशासन अंकुश कुलक गाथा 25 तित्थमालाथयं गाथा 112 12) पर्युषणा पर्व विचार गाथा 125 10) 11) महावीर पाट परम्परा 126
SR No.002464
Book TitleMahavir Pat Parampara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChidanandvijay
PublisherVijayvallabh Sadhna Kendra
Publication Year2016
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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