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________________ 40. आचार्य श्रीमद् मुनिचन्द्र सूरीश्वर जी दृढ़ संकल्पी - साहित्य शिल्पी, शिक्षा क्षेत्र होशियार । श्रुत चंद्र, मुनिचंद्र सूरि जी, नित् वंदन बारम्बार || आचार्य यशोभद्र जी एवं आचार्य नेमिचंद्र सूरि जी के पट्टालंकार आचार्य मुनिचंद्र सूरि जी वीर शासन के 40वें पाट पर आरूढ़ हुए। इनका दूसरा नाम चन्द्रसूरि रहा । ज्ञानयोग के शिखर पर विद्यमान आचार्य मुनिचंद्र सूरि जी ने संयम प्रभावना एवं साहित्य सर्जना द्वारा 'जैनम् जयति शासनम्' के उद्घोष को सर्वत्र प्रचारित किया। जन्म एवं दीक्षा : डभोई (गुजरात) के श्रावक चिन्तक की धर्मपत्नी मोंघीबाई की रत्नकुक्षि से इनका जन्म हुआ एवं इनका नाम शान्तिक रखा गया। जिनपूजा, सामायिक, गोचरी वोहराना तपस्या इत्यादि धार्मिक संस्कारों के प्रभाव से बालक के हृदय में जिनशासन के प्रति अपूर्व अपनत्व के भाव का सिंचन हुआ। गाँव में पधारे आचार्य यशोभद्रसूरि जी के प्रवचनों से बालक को सही दिशा मिली एवं वैराग्यरस पोषित - पल्लवित हुआ। माता - पिता के लाडले होने के कारण प्रथमतः दीक्षा हेतु अनुमति नहीं मिली, किंतु धर्मसंस्कारों के आवरण में पुत्र के आत्मकल्याण के मार्ग का चयन करने पर माता-पिता ने अन्ततः प्रसन्नचित्त से चारित्र अंगीकार करने की आज्ञा दी । अल्पायु में उन्होंने आचार्य यशोभद्रसूरि जी के पास दीक्षा ली एवं दीक्षा लेते ही अपने संयम जीवन को तपस्या से मंडित रखते हुए अभिग्रह भी धारण किए, जैसे 1) जीवनपर्यन्त एक दिन के आहार में मात्र 12 वस्तुओं (द्रव्यों) को ग्रहण करना । 2) जीवनपर्यन्त सोवीरपाणी (दाल या चावल का धोया हुआ अचित्त पानी ) ग्रहण करना । 3) जीवनपर्यन्त 6 विगयों एवं खाने की अनेक वस्तुओं का त्याग। 4) प्रतिदिन कम से कम आयम्बिल की तपस्या करनी ही । उपरोक्त अभिग्रहों से बालब्रह्मचारी नूतनदीक्षित बालमुनि मुनिचन्द्र ने प्रमाणित किया कि उनका दीक्षा का निर्णय उनके बालपन का नहीं अपितु बौद्धिक परिपक्वता व संयम के प्रति आत्मीय अनुराग का फल है। महावीर पाट परम्परा 124
SR No.002464
Book TitleMahavir Pat Parampara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChidanandvijay
PublisherVijayvallabh Sadhna Kendra
Publication Year2016
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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