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38. आचार्य श्रीमद् सर्वदेव सूरीश्वर जी (द्वितीय)
संयमधर्म संपदा धनी, शिष्य निधि उपहार । सर्वदेव सूरि जी सरलमना, नित् वंदन बारम्बार ॥
सम्यक् ज्ञान, दर्शन व चारित्र के धनी आचार्य सर्वदेव सूरि जी भगवान् महावीर के 38वें पट्टविभूषक बने एवं देवसूरि जी के पट्टधर बने। निस्संदेह रूप से ये सर्वदेव सूरि अपने दादागुरूदेव 36वें पट्टधर सर्वदेव सूरि जी से भिन्न थे।
जीवन वृत्तान्त :
आचार्य सर्वदेव सूरि जी (द्वितीय) के विषय में विशेष उल्लेख प्राप्त नहीं होता । इनका शिष्य समुदाय अति विशाल था।
1) आचार्य विजयचंद्र सूरि,
2) आचार्य यशोभद्रसूरि, 3) आचार्य जयसिंह सूरि,
4) आचार्य नेमिचंद्र सूरि,
5) आचार्य रविप्रभ सूरि,
6) आचार्य चन्द्रप्रभ सूरि ( प्रभाचन्द्र सूरि ),
7) आचार्य आनन्द सूरि इत्यादि 8 को आचार्य पदवी सर्वदेव सूरि जी ने ही प्रदान की थी।
शंखेश्वर तीर्थ में लोहियाण राजा को सर्वदेव सूरि जी ने बारह व्रतधारी श्रावक बनाया, जिससे जनता में उनकी जय-जयकार हुई। इनके शिष्यों ने विविध क्षेत्रों में विचरण कर 'जैनम् जयति शासनम्' का सर्वत्र उद्घोष किया। अंतरिक्ष पार्श्वनाथ तीर्थ की स्थापना इनके काल में हुई।
जिनशासन की महती प्रभावना करते हुए सर्वदेव सूरि जी वि.सं. 1130 से 1165 के बीच में स्वर्गवासी हुए। इनकी पाट पर आचार्यद्वय स्थापित हुए जिन्होंने चतुर्विध संघ का कुशल रूप से वहन किया।
महावीर पाट परम्परा
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