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28. श्री सेनतिलक सूरि
31. श्री नृसिंह सूरि
34. श्री वल्लभ सूरि
37. श्री राजदेव सूरि
40. श्री सोमप्रभ सूरि
43. श्री पद्मानंद सूरि
46. श्री भावदेव सूरि
49. श्री नागराज सूरि
52. श्री डोड सूरि
55. श्री सोवीर सूरि
58. श्री जिनसिंह सूरि
61. श्री शीलदेव सूरि
64. श्री आशानंद सूरि
67. श्री प्रभासेन सूर
29. श्री चारित्र सूरि
32. श्री विनय सूरि
35. श्री पानदेव सूरि
38. श्री जोगानंद सूरि
41. श्री कृष्णप्रभ सूरि
44. श्री नारायण सूरि
महावीर पाट परम्परा
47.
50. श्री पांडु सूरि
53. श्री खीम सूरि
56. श्री मथुरा सूरि
59. श्री वीर सूरि
62. श्री शाम्ब सूरि
65. श्री राम सूर
68. श्री आनंदराज सूरि
71. श्री रत्नराज सूरि
74. श्री मेघानंद सूरि
30.
33. श्री विजयानंद सूरि
36.
39. श्री भीमराज सूरि
42.
45. श्री कर्मचंद्र सूरि
48. श्री इल्ल सूरि
51. श्री पुष्कल सूरि
54.
57. श्री मंगल सूरि
60. श्री लाडण सूरि
63. श्री प्रियांग सूरि
66. श्री रवि सूरि
69. श्री प्रज्ञाप्रभ सूरि 72. श्री बाहट सूरि
75. श्री भोजराज सूरि
78. श्री भूतसंघ सूरि
70. श्री ब्रह्मसूरि
73. श्री कर्ण्य सूरि
76. श्री सारिंग सूरि
77. श्री रंगप्रभ सूरि
79. श्री गोकर्ण सूरि
80. श्री सहदेव सूरि इत्यादि ।
उपरोक्त सूची श्री दानसागर जैन ज्ञान भंडार, बीकानेर में प्राप्त होती है। किंतु तपागच्छ पट्टावलियों में मात्र 8 शिष्यों को ही आचार्य पदवी देने की बात प्रचलित है। एक मान्यता यह भी है कि केवल अपने पट्टशिष्य सर्वदेव सूरि जी को आचार्यपद प्रदान किया। धीरे-धीरे भिन्न-भिन्न गुरु परम्पराओं के कारण समाचारी भेदों के कारण बड़ गच्छ समय के प्रभाव से बढ़ता चला गया एवं जिस प्रकार वट वृक्ष की शाखाएं वृद्धि को पूर्णतया प्राप्त होती है, उसी प्रकार बाकी गच्छों की उत्पत्ति हुई। आज से सैकड़ों वर्ष पूर्व अनेकों गच्छ थे, 84 प्रमुख हैं
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