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________________ . समकालीन प्रभावक आचार्य . आचार्य देवर्द्धिगणी क्षमाश्रमण : आगमज्ञान को स्थायी बनाने हेतु श्रुत लेखन का महत्त्वपूर्ण कार्य करने हेतु आ. देवर्द्धिगणी का नाम जैन इतिहास में स्वर्णिम अक्षरों से अंकित है। भगवान् महावीर का गर्भहरण जिसने किया, वे देव हरिणैगमैषी की ही आत्मा ने सौराष्ट्र के कामर्द्धि क्षत्रिय की पत्नी कलावती की कुक्षि से जन्म लिया। स्वप्न में ऋद्धि सम्पन्न देव देखने के कारण माता ने पुत्र का नाम देवर्द्धि रखा। मित्र देव द्वारा उद्बोधन मिलने पर उसने दीक्षा ग्रहण की। . भयंकर दुष्काल के कारण साधु-साध्वियों की स्मृति शक्ति क्षीण हो गई तथा अनेक श्रुतध र काल कवलित हो गए। दुष्काल की समाप्ति के बाद, वल्लभी में समूचा जैन संघ एकत्रित हुआ। विशिष्ट वाचनाचार्य श्री देवर्द्धिगणी क्षमाश्रमण इस श्रमण सम्मेलन के अध्यक्ष थे। शासन देव की सहायता एवं 500 आचार्यों के सहयोग से आगमों की सुरक्षा के लिए उन्हें लिपिबद्ध करने का कार्य प्रारंभ हुआ। जिसको जितना याद था, जैसा याद था, उन सबका संकलन, त्रुटियों का निवारण, वाचनाभेद में तटस्थता इत्यादि कार्य हुए। आ. देवर्द्धिगणी के नेतृत्त्व में समग्र आगमों का जो व्यवस्थित संकलन एवं लिपिकरण हुआ, वह अपूर्व था। वही सभी साहित्यों का आध पर बना। उस समय 84 आगम लिपिबद्ध हुए थे। वि.सं. 510 (वीर निर्वाण संवत् 980) में यह हुआ। 84 आगमों के नाम1) आचारांग 2) सूत्रकृतांग 3) स्थानांग 4) समवायांग 5) विवाहप्रज्ञप्ति 6) ज्ञाताधर्मकथा 7) उपासकदशांग 8) अंतकृत-दशांग 9) अनुत्तरौपपातिक 10) प्रश्नव्याकरण 11) विपाकश्रुत 12) आवश्यक सूत्र 13) दशवैकालिक 14) कल्पिताकल्पित 15) लघुकल्पश्रुत 16) महाकल्पश्रुत 17) औपपातिक 18) राजप्रश्नीय 19) जीवजीवाभिगम 20) प्रज्ञापना सूत्र 21) महाप्रज्ञापना महावीर पाट परम्परा 91
SR No.002464
Book TitleMahavir Pat Parampara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChidanandvijay
PublisherVijayvallabh Sadhna Kendra
Publication Year2016
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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