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________________ 24. आचार्य श्रीमद् विक्रम सूरीश्वर जी तपोमार्ग से तप्त तेजस्वी, घोर अभिग्रह धार। चौबीसवें क्रम विक्रम सूरि जी, नित् वंदन बारम्बार॥ अपने ज्ञानरूपी प्रकाश से अज्ञान रूपी अंधकार का नाश करने वाले आ. विक्रम सूरि जी वीर शासन के 24वें पट्टप्रभावक हुए। इनका विहार बहुधा गुजरात की धर्मभूमि पर हुआ किंतु मरूधर, मेढ़पाट, आवंती, लाट तथा सौराष्ट्र में भी उनकी धर्मस्पर्शना हुई। एक बार गुर्जर प्रान्त में विचरण करते हुए सरस्वती नदी के किनारे 'खरसाड़ी' गाँव में पधारे। वहाँ साधनानुकूल स्थान जानकर दो महीने की जलरहित चौविहार उपवास की उग्र तपश्चर्या की। उनकी आराधना से प्रभावित होकर वीणावादिनी देवी सरस्वती प्रकट हुई एवं आचार्यश्री के चरणों में नमस्कार किया तथा ज्ञान के क्षेत्र में उनके साथ रहने का आश्वासन दिया एवं विजयी होने की बात कही। आचार्यश्री ने भी वरदान को तथास्तु कहकर स्वीकार किया। आचार्यश्री के तप प्रभाव से वर्षों से सूखा पड़ा हुआ समीप के पीपल का पेड़ हरा-भरा हो गया। जन सामान्य में विक्रम सूरि जी के ज्ञान, तपस्या एवं संयम की कीर्ति फैल गई। धांधार (गांधार) देश के गाला नगर में अनेक परमार क्षत्रियों को प्रतिबोधित करके जैनधर्मी बनाया। अपने निर्मल संयम जीवन का निर्वहन करते हुए उन्होंने अनेक मिथ्यात्व वादियों को परास्त किया एवं जैनधर्म की महती प्रभावना की। विक्रम की इस चौथी-पाँचवी सदी में आ. शिवशर्म सूरि, आ. विमलचंद्र सूरि, आ. चंद्रर्षि महत्तर, धर्मदासगणी महत्तर इत्यादि विभूतियाँ भी हुई। ये सभी समर्थ ग्रंथकार हुए एवं इनकी रचनाएं आज भी पढ़ी जाती हैं; जैसे - आचार्य शिवशर्म सूरि जी द्वारा विरचित कर्म प्राभृत एवं कर्मग्रंथ • आचार्य चन्द्रर्षि महत्तर जी द्वारा विरचित पंचसंग्रह . वाचक श्री संघदास गणि जी द्वारा विरचित वसुदेवहिण्डी, बृहत्कल्प-लघुभाष्य • आचार्य धर्मदास महत्तर जी द्वारा विरचित उपदेशमाला इत्यादि। -..... महावीर पाट परम्परा 88
SR No.002464
Book TitleMahavir Pat Parampara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChidanandvijay
PublisherVijayvallabh Sadhna Kendra
Publication Year2016
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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