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________________ 20. आचार्य श्रीमद् मानतुंग सूरीश्वर जी महिमावंत गुरु मानतुंग जी, जान असार संसार। मोक्षमार्ग संवाहक आचार्यवर, नित् वंदन बारम्बार॥ जैन इतिहास में आचार्य मानतुंग सूरि जी नाम के 2 आचार्य प्रसिद्ध हुए हैं - एक विक्रम की चौथी शताब्दी में हुए मानदेव सूरि जी के पट्टधर यानि भगवान् महावीर के 20वें पट्टधर आ. मानतुंग सूरि जी एवं दूसरे विक्रम की आठवीं शताब्दी में हुए भक्तामर स्तोत्र के रचयिता आचार्य मानतुंग सूरि जी। कुछ इतिहासकारों ने दोनों मानतुंग सूरि जी को एक मानकर उपरोक्त मानतुंग सूरि जी द्वारा भक्तामर स्तोत्र की रचना का उल्लेख किया है। किन्तु शोध एवं अनुसंधानों से दोनों के भिन्न-भिन्न होने के स्पष्ट प्रमाण मिलते हैं। __इन आचार्य मानतुंग सूरि जी ने ग्राम-ग्राम विचरण कर अनेक लोगों को जैन बनाया। इस समय भारत की राजनैतिक परिस्थितियां काफी अस्थिर रही। गुप्तवंश, कुषाण-राजवंश, भारशिव वंश आदि अनेक राजवंश आए तथा गए। सामान्य प्रजा पर भी इसका स्वाभाविक असर पड़ता है। जैन समाज पर भी इसका व्यापक असर पड़ा। जिनमंदिरों, जिनागमों का संरक्षण किए रखना समाज के प्रत्येक व्यक्ति का दायित्व सा बन गया। ___ मानतुंग सूरि जी सताईस वर्षों तक गच्छनायक के रूप में जिनशासन की महती प्रभावना करते हुए आचार्य वीर सूरि जी को अपना पट्टधर घोषित कर के वि.सं. 288 (वीर निर्वाण 758) में कालधर्म को प्राप्त हुए। लगभग इसी कालक्रम में आचार्य विमल सूरि जी हुए। उनकी 2 रचनाएँ प्रमुख हैं - पउमचरिउ (पद्मचरित्र) और हरिवंश चरिउ (हरिवंश चरित्र) जो क्रमशः जैन रामायण और जैन महाभारत के नाम से भी प्रसिद्ध है। ये रचनाएँ प्राकृत में है, किंतु इनका सटीक समय प्राप्त नहीं होता। महावीर पाट परम्परा
SR No.002464
Book TitleMahavir Pat Parampara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChidanandvijay
PublisherVijayvallabh Sadhna Kendra
Publication Year2016
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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