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________________ 19. आचार्य श्रीमद् मानदेव सूरीश्वर जी मानविजय अभिमानविजयी, लघुशान्ति रचनाकार। ___ मुक्ति मंत्र मेधा धनी, नित् वंदन बारम्बार॥ जैन समाज में अति प्रसिद्ध महामंगलकारी लघु शांति (छोटी शांति) एवं महाप्रभावक तिजयपहुत्त स्तोत्र के रचयिता वीर शासन परम्परा के 19वें पट्टप्रभावक आचार्य मानदेव सूरि जी अत्यंत विद्वान तथा तपस्वी विभूति थे। चतुर्विध संघ के संरक्षण तथा संवर्द्धन हेतु उन्होंने अनेक कार्य किए तथा जिनशासन की दिग्-दिगन्त प्रभावना की। जन्म एवं दीक्षा : नाडोल (राज.) नगर में धनेश्वर (जिनदत्त) नाम का प्रख्यात श्रेष्ठी रहता था। उसकी धर्मपत्नी का नाम धारिणी था। दोनों के सद्गार्हस्थ्य से उन्हें एक पुत्ररत्न की प्राप्ति हुई। बालक अत्यंत रूपवान था। उसका नाम 'मानदेव' रखा गया। चन्द्रमा की 16 कलाओं की भाँति पुत्र की कलाएं दिन-प्रतिदिन निखरती रही। __ विहार करते-करते आचार्य प्रद्योतन सूरि जी नाडोल नगर में पधारे। उनके कुछ दिन की स्थिरता में उनके द्वारा बरसाए जिनवाणी के प्रवचन रूपी मोतियों से मानदेव को भी मोक्ष मार्ग के पथ पर चलने हेतु सर्वविरति धर्म की अभिलाषा हुई। माता-पिता ने किसी तरह अपने हृदय को वश में कर मानदेव का ज्ञानगर्भित वैराग्य देख दीक्षा की आज्ञा दी। शुभ मुहूर्त में आचार्य प्रद्योतन सूरि जी की परम तारक निश्रा में बालक की प्रव्रज्या सम्पन्न हुई। शासन प्रभावना : मुनि मानदेव की स्मरणशक्ति अपूर्व थी। अल्प समय में ही गुरुनिश्रा में रहकर उन्होंने 11 ओं को, छेद सूत्रों आदि का गहन अध्ययन किया। अपने शिष्य को हर कसौटी पर खरा मानकर आचार्य प्रद्योतन सूर जी ने उन्हें आचार्य पद प्रदान किया तथा वे 'आचार्य मानदेव सूर' के नाम से प्रसिद्ध हुए। उनके सूरिपद प्रदान महोत्सव के समय सरस्वती और लक्ष्मी नामक 2 देवियाँ साक्षात् उनके कंधों पर प्रकट हुई। संपूर्ण जनमानस में आचार्य मानदेव सूरि जी की विद्वत्ता एवं ऋद्धि का महावीर पाट परम्परा 77
SR No.002464
Book TitleMahavir Pat Parampara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChidanandvijay
PublisherVijayvallabh Sadhna Kendra
Publication Year2016
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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