SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 102
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 15. आचार्य श्रीमद् चन्द्र सूरीश्वर जी युगचन्द्र प्रकाशक चंद्र सूरि जी, चंद्रगच्छ अवतार । शान्ति - सौम्यता - शशिकलायुक्त, नित् वंदन बारम्बार ॥ यथा आचार्य वज्रसेन सूरि जी के 4 प्रमुख शिष्यों से श्रमण परम्परा की 4 शाखाएं निकलीं । निवृत्ति कुल, विद्याधर कुल, नागेन्द्र कुल तथा चन्द्र कुल । उनमें से सबसे विशाल तथा दीर्घजीवी चन्द्रकुल के आद्य उन्नायक आचार्य चन्द्र सूरि जी भगवान् महावीर के 15वें पट्टधर हुए एवं उनके नाम से 'चन्द्र गच्छ' यह नाम प्रसिद्ध हुआ । - जन्म एवं दीक्षा : कुंकुण देश के सोपारक नगर में राजा जितशत्रु एवं रानी धारिणी का साम्राज्य था। वहाँ जैन धर्म का परमोपासक श्रेष्ठी जिनदत्त एवं उसकी पत्नी ईश्वरी थीं। वि.सं. 106 में उनके घर में पुत्ररत्न उत्पन्न हुआ जिसका नाम चन्द्र रखा गया। उसके निवृत्ति, नागेन्द्र तथा विद्याधर नाम के 3 भाई भी थे। वे सल्लहड़ / उपकेश गौत्रीय थे। जब चन्द्र 4 साल का था, तब अधिकतम भारतवर्ष में सूखा पड़ा था। यह दुष्काल 12 वर्ष तक रहा। दुष्काल में इनकी हालत भी जर्जर हो चुकी थी, जीवन से अधिक मृत्यु की इच्छा हो रही थी, किन्तु वज्रसेन सूरि जी के सद्द्बोध से धैर्य बाँधा । इसका संपूर्ण विवरण आचार्य वज्रसेन सूरि जी के जीवन में उल्लेख किया जा चुका है। दुष्काल की समाप्ति पर वैराग्य भावना से ओत-प्रोत होकर 16 वर्ष की आयु में वि.सं. 122 (ईस्वी सन् 65 ) में चन्द्र ने माता-पिता तथा भाइयों सहित आचार्य वज्रसेन सूरि जी के पास प्रव्रज्या ग्रहण की। शासन प्रभावना : मुनि चन्द्र जी ने गुरुनिश्रा में रहते हुए आगम शास्त्रों का गंभीर स्वाध्याय किया । विशिष्ट ज्ञानार्जन का अवसर जानकर वज्रसेन सूरि जी ने मुनि चन्द्र सहित सभी साधु-साध्वियों को पढ़ने हेतु अनुयोगधर आगमविज्ञ आचार्य यक्षदेव सूरि जी के पास भी भेजा। मुनि चन्द्र विजय जी विशिष्ट स्मृति शक्ति एवं अमेय प्रतिभा के धनी थे। वे 10 से कुछ कम पूर्वों के ज्ञाता थे। महावीर पाट परम्परा 68
SR No.002464
Book TitleMahavir Pat Parampara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChidanandvijay
PublisherVijayvallabh Sadhna Kendra
Publication Year2016
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy