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________________ तीर्थंकर : एक अनुशीलन 3 49 जिज्ञासा - तीर्थंकर का जन्म किस प्रकार से कल्याण करता है? समाधान - तीर्थंकर के जन्म को कल्याणक कहने के अनेक कारण हैं। उनके जन्म पर नारकी जीव क्षण भर के लिए सुख का अनुभव करते हैं। सूक्ष्म रूप से देखें तो तीर्थंकर के जन्म के प्रभाव से सातों नरकों में अचिन्त्य प्रकाश होता है। इससे आर्तध्यान में जीने वाले नारकी अचानक हैरान हो जाते हैं। एवं उस हैरानी, आश्चर्य होने के कारण अपनी अपार वेदना को भी भूल जाते हैं व सुख का अनुभव करते हैं। शास्त्र यह भी बताते हैं कि तीर्थंकर के जन्म के समय अन्तर्मुहूर्त के लिए जो भी व्यक्ति अपना आयुष्य कर्म बांधता है, वह उच्च गति के ही बांधता है। मनुष्य, मनुष्य व देवगति का। देव, मनुष्य गति का। तिर्यंच, मनुष्य व देवगति का। नारकी तिर्यंच का मनुष्य गति का आयुष्य बाँधते हैं। इस प्रकार से इनका जन्म सर्वजीवों के लिए कल्याणरूप जिज्ञासा - देवलोक तो बारह हैं जिनके कुल 10 इन्द्र कहे गए हैं। किन्तु 250 अभिषेक में सौधर्मेन्द्र व ईशानेन्द्र की ही अग्रमहिषियों के अभिषेक आते हैं, अन्य के क्यों नहीं ? . समाधान - सौधर्मेन्द्र व ईशानेन्द्र की 8-8 अग्रमहिषियाँ हैं, जो कुल 16 अभिषेक करती हैं। अन्य देवलोक (वैमानिक) में इन्द्रों की अग्रमहिषी ही नहीं होती। - जिज्ञासा - तीर्थंकर के जन्म से संबंधित माता-पिता परिवार की क्या विशेषताएँ होती हैं ? __ समाधान - तीर्थंकर का जन्म होने पर भी उनके परिवार में सूतक नहीं लगता। अनेक आचार्यों ने तीर्थंकर के पिता को 'उदयाद्रि' व माता को 'प्राचीदिशा' कहा है क्योंकि अन्य स्थान व दिशाएँ तीर्थंकर रूपी सूर्य को जन्म नहीं दे सकती। आचार्य मानतुंग सूरि ने कहा है स्त्रीणां शतानि शतशो जनयन्ति पुत्रान् । नान्या सुतं त्वदुपमं जननी प्रसूता। सर्वा दिशो दधति भानि सहस्ररश्मिं। प्राच्येव दिक् जनयति स्फुरदंशुजालम्॥
SR No.002463
Book TitleTirthankar Ek Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurnapragnashreeji, Himanshu Jain
PublisherPurnapragnashreeji, Himanshu Jain
Publication Year2016
Total Pages266
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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