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तीर्थंकरों की संख्या : एक अनुचिन्तन
वैदिक परम्परा अवतारवाद में विश्वास रखती है, फिर भी उनके अवतारों की संख्या में एकमत नहीं है। पुराणों आदि में कहीं पर 16, कहीं पर 22, किसी जगह 24, अन्यथा असंख्य अवतार माने गए हैं।
__ यद्यपि बौद्ध परम्परा अवतारवाद का समर्थन नहीं करती, किन्तु वे भी बुद्धों की संख्या में एकमत नहीं हैं। महायान सूची में 32, लंकावतार इत्यादि सूत्रों में कहीं 7, कहीं 24 अथवा किसी जगह असंख्य बुद्धों का उल्लेख किया गया है।
जैन आम्नाय में ऐसी मत विभिन्नता नहीं है। समवायांग, जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति, प्रवचनसारोद्धार, कल्पसूत्र इत्यादि श्वेताम्बर परम्परा के ग्रन्थों में तथा महापुराण, तिलोयपण्णत्ति, त्रिलोकसार इत्यादि दिगम्बर परंपरा के शास्त्रों में एकरूप वर्णन है।
चूँकि महाविदेहक्षेत्र में कालव्यवहार नहीं होता, वहाँ सदा चौथा आरा रहता है। अतः वहाँ 20 तीर्थंकर होते हैं। वे 20 तीर्थंकर सदैव विचरते हैं, अत: उन्हें सामान्यतः 'विहरमान' कहकर सम्बोधित किया जाता है। हम भी उन्हें 'विहरमान' ही लिखेंगे।
भरत ऐरावत क्षेत्रों में प्रत्येक काल में चौबीस-चौबीस तीर्थंकर उत्पन्न होते हैं अर्थात् भरत के क्रमश: 24, ऐरावत पूर्व के क्रमश: 24, ऐरावत पश्चिम के क्रमश: 24 इत्यादि द्वीप के अनुसार। तीर्थंकरों की जघन्यतम संख्या
यह संभव है कि भरत ऐरावत क्षेत्रों में कालवश (पहले दूसरे पाँचवें आदि आरे में) तीर्थंकर उपस्थित न हों। किन्तु महाविदेह क्षेत्र में तीर्थंकर सदैव विराजमान होते हैं। एक महाविदेह क्षेत्र में कम-से-कम 4 (चार) तीर्थंकर (विहरमान) हमेशा विद्यमान रहते हैं। पाँच महाविदेह होने से तीर्थंकरों (विहरमानों) की जघन्यतम संख्या 5 x 4 = 20 है। अर्थात् अभी भी, जब हमारे भरत क्षेत्र में कोई तीर्थंकर नहीं है, महाविदेह क्षेत्रों में कम-से-कम 20 तीर्थंकर होंगे ही। ऐसा अनादि नियम
किसी के भी साथ वैर-विरोध नहीं करना चाहिए।
- सूत्रकृताङ्ग (1/11/12)