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क्र.सं. भूत काल
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तीर्थंकर : एक अनुशीलन 227
पुष्करार्ध द्वीप के पश्चिम भरत क्षेत्र की त्रिकाल चौबीसी
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श्री पद्मचन्द्र
श्री रक्तांक
श्री अयोगिक
श्री सर्वार्थ (सिद्धार्थ)
श्री ऋषिनाथ
श्री हरिभद्र
श्री गणाधिप
श्री पारत्रिक (पत्रकाय)
श्री ब्रह्म
श्री मुनीन्द्र
श्री दीप
श्री राजर्षि
श्री विशाख
श्री अचिंतित (आनंदित )
श्री रवि
श्री सोमदत्त
श्री जय
श्री मोक्ष
श्री अग्निभानु
श्री धनुष्कांग
श्री रोमांचित
श्री मुक्तिनाथ
श्री प्रसिद्ध
श्री जिनेश
वर्तमान काल
श्री पद्मपद
श्री प्रभावक
श्री योगेश्वर
श्री बल
श्री सुषमांग
ला
श्री
श्री मृगांक
श्री कलबंक
श्री ब्रह्मनाथ
श्री निषेधक
श्री पापहर
श्री स्वामी
श्री मुक्तिचंद्र
श्री अप्राशिक
श्री नदीतट
श्री मलधारी
श्री सुसंयम
श्री मलयसिंह
श्री अक्षोभ
श्री देवधर
श्री प्रयच्छ
श्री आगमिक
श्री विनीत
श्री रतानंद
भविष्य काल
श्री प्रभावक
श्री विनयचन्द्र
श्री सुभाव
श्री दिनकर
श्री अगस्तेय ( अनंततेज)
श्री धनदत्त
श्री पौरवनाथ
श्री जिनदत्त
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श्री पार्श्वनाथ
श्री मुनिसिंधु
श्री आस्तिक
भवानंद
श्री नृपनाथ
श्री नारायण
श्री प्रथमांक
श्री भूपति
श्री सुदृष्ट
श्री भवभीरुक
श्री नंदन
श्री भार्गव
श्री परानस्यु
श्री किल्विषाद
श्री प्रभाशिव (नवनाशिक ) श्री भरतेश
मेधावी साधक को आत्मपरिज्ञान से यह दृढ निश्चय करना चाहिए कि मैंने पूर्व जीवन में प्रमाद के कारण जो कुछ भूल की है, वह अब कदापि नहीं करूंगा।
आचाराङ्ग (1/1/4/36)