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क्र.सं. भूत काल
श्री सुमेरु
श्री जिनकृत
श्री ऋषिकेलि (अतीर्थ )
1.
2.
3.
4.
5.
6.
7.
8.
तीर्थंकर : एक अनुशीलन 888225
धातकीखंड के पश्चिम ऐरावत क्षेत्र की त्रिकाल चौबीसी
ܘ
| श्री अमृतेन्द्र
श्री शंखानंद
10. श्री कल्याणव्रत
11.
श्री हरिनाथ
12.
श्री बाहुस्वामी
13.
श्री भार्गव
14.
15.
16.
17.
18.
19.
20.
21.
22.
23.
24.
9.
श्री प्रशस्तदत्त ( अश्ववृंद)
श्री निर्धर्म
श्री कुटलिक
श्री वर्धमान
श्री सुभद्र
श्री प्रतिप्राप्त (पंचपाद)
श्री वियोषित
श्री ब्रह्मचारी
श्री आसकृत
श्री चारित्रेश
श्री पारिणामिक
श्री कंबोज
श्री निधिनाथ
श्री कौशिक
श्री धर्मेश
वर्तमान काल
श्री उषादित
श्री जयनाथ (जिनस्वामी)
श्री स्तमित
श्री इंद्रजित ( अभिधान )
श्री पुष्पक
श्री मंडिक
श्री प्रहर
श्री मदनसिंह
श्री हस्तनिधि
श्री चंद्रपार्श्व
श्री अश्वबोध
श्री जिनाधार (जनकादि)
श्री विभूति
श्री कुमरीपिंड
श्री सुवर्ण
श्री हरिवास
श्री प्रियमित्र
श्री धर्मदेव
श्री धर्मचंद्र
श्री प्रवाहित
श्री नंदिनाथ
श्री अश्वामिक (पावन )
श्री पूर्व (पार्श्व )
श्री चित्रस्वामी
भविष्य काल
श्री रवीन्द्र
श्री सुकुमाल
श्री पृथ्वी
श्री कुलपरोधा (कलापक)
श्री धर्मनाथ
श्री प्रियसोम
श्री वारुण
श्री अभिनंदन
श्री सर्वा
श्री सदृष्ट
श्री मौष्टिक
श्री सुवर्णकेतु
श्री सोमचंद्र
श्री क्षेत्राधिप
श्री सौढातिक
श्री कूर्मेषुक
श्री तपोरि
श्री देवतामित्र
श्री कृपार्श्व
श्री बहुद
श्री अधोरिक
श्री निकंबु
श्री दृष्टिस्वामी
श्री वक्षेश
जिस साधक की आत्मा इस प्रकार दृढ निश्चयी हो कि यह शरीर भले ही चला जाय, परन्तु मैं अपना धर्म-शासन छोड़ नहीं सकता, उसे इन्द्रिय-विषय कभी भी विचलित नहीं कर सकते, जैसे सुमेरु पर्वत को भीषण बवंडर | दशवैकालिक चूलिका (1/17)