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क्षेत्र का नाम
1. पूर्व महाविदेह
2.
3. पूर्व महाविदेह
4.
5. पूर्व महाविदेह
6.
7.
8.
9.
10.
11.
12.
13. पूर्व महाविदेह
14.
15.
16.
17. पश्चिम महाविदेह
18.
19.
20.
पश्चिम महाविदेह
पश्चिम महाविदेह
:::
99
99
पश्चिम महाविदेह
99
99
""
""
22
99
E
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99
99
तीर्थंकर : एक अनुशीलन 217
विजय का नाम विजय का क्रम
पुष्कलाव
वप्रा
वत्सा
नलिनावती
पुष्कलावती
वप्रा
वत्सा
नलिनावती
पुष्कल
वप्रा
वत्सा
नलिनावती
पुष्कलावती
वप्रा
वत्सा
नलिनावती
पुष्कलावती
वप्रा
वत्सा
नलिनावती
8
25
9
24
8
25
9
24
8
25
9
24
8
25
9
24
8
25
9
24
नगरी
पुंडरीकिणी
विजया
सुसीमा
वीतशोका
पुंडरीक
विजया
सुसीमा
वीतशोका
पुंडरीकी
विजया
सुसीमा
वीतशोका
पुंडरीक
विजया
सुसीमा
वीतशोका
पुंडरीकिणी
विजया
सुसीमा
वीतशोका
दिशा
पूर्व
पश्चिम
पूर्व
पश्चिम
पूर्व
पश्चिम
पूर्व
पश्चिम
पूर्व
पश्चिम
पूर्व
पश्चिम
पूर्व
पश्चिम
पूर्व
पश्चिम
पूर्व
पश्चिम
पूर्व
पश्चिम
विशेष : सीमंधर स्वामी जी द्वारा प्ररूपित 4 चूलिकाएँ भरत क्षेत्र में आई थी। जैनाचार्य स्थूलिभद्र सूरि जी की सांसारिक बहन साध्वी यक्षा को एक बार सुनने मात्र से ही स्मरण हो जाता था। एक बार साध्वी जी को आत्म ग्लानि हुई कि मुनि श्रीयक का कालधर्म उनके द्वारा जबरदस्ती तपस्या कराने द्वारा हुआ है। शंका निवारणार्थ शासनदेवी साध्वी यक्षा को महाविदेह क्षेत्र में ले गई जहाँ समवसरण में प्रभु देशना दे रहे थे। साध्वी यक्षा को जितना स्मरण रहा, उसके आधार पर वापिस आकर उन्होंने 4 चूलिकाएँ लिखीं जिनमें से 2 आज भी सुरक्षित हैं।