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तीर्थकर : एक अनुशीलन
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तीर्थंकर
सामान्य केवली
ज्ञान
देशना व तीर्थस्थापना
गर्भ से ही तीन ज्ञान के धारक होते हैं तथा अनियमित: मति-श्रुत-अवधि ज्ञान कभी दीक्षा लेते ही चतुर्थ मनःपर्यव ज्ञान उत्पन्न | भी हो सकते हैं। दीक्षा पश्चात् किसी भी हो जाता है। साधना के पश्चात् केवलज्ञान | क्षण मन:पर्यव ज्ञान हो सकता है। तत्पश्चात् होता है।
| केवलज्ञान होता है। तीर्थंकरों की देशना के लिए देवता समवसरण | सामान्य केवली मूक-अमूक दोनों प्रकार की रचना करते हैं। उनकी देशना निश्चित के होते हैं। अमूक देशना नहीं देते। मूक प्रतिबोधयुक्त होती है तथा तिर्यंचों को | के लिए समवसरण का कोई नियम नहीं अपनी-अपनी भाषा में समझ आती है। है। उनका प्रवचन सर्वथा सर्वदा प्रतिबोधयुक्त साधु-साध्वी, श्रावक-श्राविका रूप चतुर्विध हो, ऐसा नहीं है। तिर्यंचों को भाषा समझ संघ की रचना करते हैं। उनके नाम से शासन में नहीं आती। वे तीर्थ की स्थापना नहीं चलता है।
| करते। अत उनके नाम से शासन नहीं
चलता। तीर्थंकरों के 34 मूल अतिशय एवं 35 | सभी अतिशय नहीं होते हैं। बल भी परिमित वचनातिशय होते हैं अपरिमित बल होता | होता है।
अतिशय
शिष्य सम्पदा
दो का मेल
अनेक शिष्य होते हैं। प्रधान शिष्य गणधर' | कई सामान्य केवलियों के शिष्य होते हैं कहलाते हैं। तीर्थंकर के नाम से चली पाट | एवं कईयों के नहीं भी होते। उनका शासन परम्परा पर शिष्य विराजमान होते हैं। या पाटपरम्परा नहीं चलती। । दो तीर्थंकरों का मेल कभी भी नहीं हो | दो सामान्य केवलियों का मेल हो सकता सकता। तीर्थंकरों की जघन्य लम्बाई सात हाथ एवं सामान्य केवली की जघन्य लंबाई दो हाथ उत्कृष्ट ऊँचाई 500 धनुष होती है। एवं उत्कृष्ट ऊँचाई 500 धनुष ही होती
अवगाहना
आयु
संख्या
जघन्य सर्वायु 72 वर्ष। उत्कृष्ट सर्वायु 84 | जघन्य सर्वायु 9 वर्ष। उत्कृष्ट सर्वायु एक लाख पूर्व
करोड़ पूर्व अढाई द्वीप में प्रत्येक समय कम-से-कम | प्रत्येक समय कम-से-कम 2 करोड़ केवली 20 तीर्थंकर तो होते ही हैं। तीर्थंकरों की | मध्यलोक में विचरते है। सामान्य केवली उत्कृष्ट संख्या 170 है। एक क्षेत्र में एक की उत्कृष्ट संख्या 9 करोड़ है। एक क्षेत्र ही तीर्थंकर होते है। एक समय में। | में अनेक सामान्य केवली हो सकते हैं।