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का पुत्र भीमदेव पाटन का शासक हुआ। भीमदेव के मंत्री विमलशाह ने १०३१ ई० में आबू के निकट देलवाड़े के प्रसिद्ध मन्दिर को बनाया था, जिसके विषय में प्रसिद्ध है कि कला
दृष्टि से उसकी समता करने वाली कृति भारत में अन्य नहीं है ।' महमूद गजनवी ने सन् १०२५ ई० में सोमनाथ पर आक्रमण किया था। उसका प्रतिरोध करने में अपने आपको असमर्थ पाकर भीमदेव ने कंथकोट के किले में शरण ली। वापस लौटते समय भीमदेव की सैनिक टुकड़ियों ने महमूद को रेगिस्तान व कच्छ के दलदल में भटका कर बहुत परेशान किया था, जिसका बदला महमद जीते जी न ले सका । भीमदेव के समकालीन शासक सिन्ध में हम्मुक, मालवे में भोजराज और अजमेर में चौहान राजा वीर्य राम थे । भीमदेव ने हम्मुक को हराया था। इसी बीच मालवा के सेनापति कुलचन्द्र ने पाटण को आकर लूट लिया । भीमदेव ने रुष्ट होकर मालवा पर आक्रमण कर दिया। चेदि का शासक कर्णदेव भी इस समय मालवे की ओर बढ़ रहा था। दोनों ने मिलकर धारानगरी को जीत लिया । इसी समय भोज की मृत्यु आकस्मिक बीमारी से हो गई । *
भीमदेव की मृत्यु के बाद सन् १०६३ ई० तक उसके पुत्र व र्ण ने गुजरात पर शासन किया। उसकी प्रशस्ति में बिल्हण पंडित ने कर्ण सुन्दरी नामक नाटिका की रचना की है । ५ कर्णदेव की पत्नी कर्णाटदेशीया राजकुमारी मयणल्लदेवी से सिद्धराज जयसिंह का जन्म हुआ । जिनवल्लभसूरि ने कर्णदेव के समय गणि के रूप में जीवन यापन किया था। ये कूर्च - पुरीय जिनेश्वरसूरि के शिष्य थे ।
१०६३ ई० में सिद्धराज जयसिंह का राज्यारोहण हुआ । उसके राजत्व काल में जिनवल्लभ की आचार्य एवं ग्रन्थकर्त्ता के रूप में प्रतिष्ठा हुई। सिद्धराज सोलंकियों में सबसे प्रतापी शासक था । उसने १२ वर्ष तक मालवे के राजा नरवर्मा से युद्ध किया और उसके पुत्र 'यशोवर्मा को कैद करके मालवा के राज्य को गुजरात में मिला लिया । चित्तौड़ और बागड पर भी जयसिंह का अधिकार हो गया । उसने महोबा के चन्देल राजा मदनवर्मा पर भी चढाई की थी । गिरनार के खेंगार को भी जयसिंह ने पराजित किया था। अजमेर के चौहान अर्णोराज को जयसिंह की पुत्री कांचनदेवी ब्याही गई थी, ७ जिससे पृथ्वीराज चौहान के पिता सोमेश्वर का जन्म हुआ । जयसिंह के दरबार में कई विद्वान् रहते थे, जिनमें आचार्य हेमचन्द्र, श्रीपाल, वर्द्धमान, सागरचन्द्र आदि के नाम उल्लेखनीय हैं। जयसिंह की के
मृत्यु
१. प्रभाजी का राजपूताने का इतिहास ।
२. भारत का इतिहास : डॉ० ईश्वरीप्रसाद
३. इतिहास प्रवेश : जयचन्द्र विद्यालंकार
४. भारत के प्राचीन राजवंश : पं० विश्वेश्वरनाथ रेउ
५. जैन साहित्य नो संक्षिप्त इतिहास : मो० द० देसाई ६. वही ।
७. नागरी प्रचारिणी पत्रिका भाग १. पृ० ३९३-३९४
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[ वल्लभ-भारती