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हउं न अंतु परियारण प्रहु जण तग्गुबह । सुद्धधम्मि हउ ठाविउ जुगपवरागमिण,
एउ विमइ परियाणिउ तग्गुणसंकमिण ॥४५।। भमिउ भूरिभवसायरि तह. वि न पत्तु मई,
. सुगुरुरयणु जिणवल्लहु दुल्लहु सुद्धमइ । पाविय तेण न निव्वुड इह पारत्तियइ,
परिभव पत्त बहुत्त न हुय पारत्तियइ ।।४६।। इय . जुगपवरह सूरिहि सिरिजिणवल्लहह, नायसमयपरमत्थह
बहुजगदुल्लहह। तसू गुणथुइ बहुमाणिण सिरिजिणवत्तगुरु, करइ सु निरुवमु पावइ पउ जिणदत्तगुरु ॥४७॥
- -चर्चरी पद्य १-८%४०-४७, सिरिजिणवल्लहसूरीहि विरइयं अमिह तं वंदे ।।२२।। कलिकालकुमुइणीवरणसंकोयणकारि सूरकिरणव्व । इह सुत्तासुत्तपया व भासराल्लासिणो जेसि ।।२३।। ठाणट्ठाणट्ठियमग्गनासि
संदेहमोहतिमिरहरा। कुग्गहिवग्गकोसियकुलकवलियलोया
लोया ॥२४॥ तेहिं पभासियं जं तं विहडइ नेय घडइ जुत्तीए । वंदे सुत्तं सुत्ताणुसारि संसारिभयहरणं ॥२॥ गुरुगयणयलपसाहरण पत्तपहो पयडिया समदि सोहो। हयसिवपहसंदेहो
कयभब्वम्भोरुहविबोहो ॥२६॥ सूरुब्व सूरिजिणवल्लहो य जाउ जए जुगपवरो ।
-श्रुतस्तव गाथा २२-२७
वल्लभ-भारती]