SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 183
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मुनिपति चरित्र और श्रेयांसनाथ चरित्र देखने से आपका प्राकृत भाषा पर भी पूर्ण अधिकार प्रतीत होता है। आपकी यह षडशीति पर टीका न अत्यधिक विस्तृत है और न अति संक्षिप्त ही। इसमें प्रकरणगदित वस्तु का विवेचन अत्यन्त ही स्पष्टता के साथ किया गया है। इससे ज्ञात होता है कि आप कर्म-साहित्य के भी पूर्णज्ञाता थे। ___ यह टीका 'सटीकाश्चत्वारः प्राचीनकर्मग्रन्थाः' नामक ग्रन्थ में आत्मानन्द सभा भावनगर से प्रकाशित हो चुकी है। यशोभद्रसूरि आगमिक-वस्तुविचारसार प्रकरण के टीकाकार आचार्य यशोभद्र चन्द्रकुलीय, राजगच्छीय ( देशाई के अनुसार ) आचार्य शीलभद्रसूरि के प्रशिष्य, सूक्ष्मार्थविचारसार प्रकरण के टीकाकार ख्यातनामा आचार्य श्रीधनेश्वरसूरि के प्रशिष्य तथा शाकंभरी नरेश, अजयदेव प्रतिबोधक, महाराजा अर्णोराज की राजसभा में दिगम्बर मतानयायी प्रसिद्ध विद्वान विद्याचन्द्र एवं गुणचन्द्र के विजेता, धर्मकल्पद्र मग्रन्थ के प्रणेता आचार्य धर्मसूरि (धर्मघोषसूरि) के शिष्य थे । जैसा कि प्रशस्ति से स्पष्ट है: - शब्दककारणतयाद्भुतवैभवेन, सद्भावभूषिततया ध्रुवतानुवृत्त्या । पुष्णात्यखण्डमिह यद्गमनेन संख्यं, चान्द्र कुलां तदवनाधिविगीतमस्ति ॥१॥ तत्रोदितः प्रतिदिनं स्मरमत्सरादि-दैतेयनिर्दयविमर्दनकेलिलोलः । विश्वेप्यधृष्ट्यमहिमासवितेव सूरिः, श्रीशीलभद्र इति विश्रु तनामधेयः ॥२॥ तस्याऽभवद् भुवनवल्लभभाग्यसम्पद्, सूरिधनेश्वर इति प्रथितः स श्रुष्यतः । अद्याप्यमन्दमतयो ननु यत्प्रतिष्ठामादित्सवः किमपि चेतसि चिन्तयन्ति ।।४।। सूक्ष्मार्थ-सार्ध शतकप्रकरणविवरणमिषेण सम्यग्दृशाम् ।। मलयजमिव लोकानां हृदयानि मुखानि भूषयति ॥५॥ xxx नृपतिरजयदेवो देवविद्वन्मनीष-मददलनविनोदैः कोविदेस्तुल्यकालम् । स्थितिमुपधिविरुद्धां मागधीयामधत्त, स्खलितमखिलविद्याचार्यक यस्य दृष्ट्वा ॥६॥ अर्णोराजनपे सभां परिवढे श्रीदेवबोधादिषु, प्राप्तानेकजयेषु साक्षिषु सदिग्वासः शिरः शेखरः । सद्विद्योपि गुणेन्दुरन्तरुदितक्षोभोद्भवेद्वपथुहेतुर्यस्य निशम्य मन्त्रविमुखं तत्याज वादवतम् ।।१०॥ यस्य श्रीखण्डपाण्डुर्धमति दशदिशः कीतिरुत्साहिते वा, घाट द्रष्टं त्रिलोक्याः सुरभितभुवनस्तैः पवित्रश्चरित्रैः । तस्य श्रीधर्मसूरिनिरवधिधिषणाशालिनः शिष्यलेशः, स्मृत्यै स्वस्येदमल्पं विवरणमकृत श्रीयशोभद्रसूरिः ॥११॥ आपकी प्रतिष्ठित सं० ११६५ की एक मूत्ति अजमेर म्युजियम म प्राप्त है। लेख के लिये देखें, उपाध्याय विनयसागर सम्पादित 'प्रतिष्ठालेख संग्रह' लेख १५. १४८ ] [ वल्लभ-भारती
SR No.002461
Book TitleVallabh Bharti Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherKhartargacchiya Shree Jinrangsuriji Upashray
Publication Year1975
Total Pages244
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy