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७. चलबिन्दुजाति ८. विर्गतजाति
६. त्रिः समस्तजाति १०. त्रिसमस्तसूत्रोत्तरजाति ११. द्विर्गतजाति
१२. द्विः समस्तजाति
१३. द्विर्व्यस्त समस्त जाति
१४. द्वादशपत्रं पद्मम्
१५. द्विगतभाषाचित्रक १६. नामाख्यातजाति
१७. पद्मजाति
१८. पद्मान्तरजाति
१६. पादोत्तरजाति
२०. भाषाचितजाति
२१. भाषाचित्रद्विर्गतजाति
२२. भाषाचित्रकसमवर्णजाति २३. मञ्जरी सनाथजाति २४. मन्थानजाति २५. मन्थानान्तरजाति
२६. वर्धमानाक्षरजाति २७. व्यस्तकमलाष्टदलजाति
२८. व्यस्तसमस्तजाति
२६. वाक्योत्तरजाति
३०. विपरीताष्टदलजाति
३१. विपरीतमंजरीसनाथजाति
३२. विषमजाति
३३. श्लोकमध्यस्थितसमवर्ण प्रश्नोत्तरजाति
१. प्र. १०६; ११५; २. प्र. १८८८ ७६;
वल्लभ-भारती ]
३४. श्रृंखलाजाति
३५. समवर्ण प्रश्नोत्तरजाति ३६. समस्तव्यस्तजाति
प्रश्नों में विषय-भेद और शैलीभेद के अतिरिक्त भाषाभेद भी मनोरंजनकारी है । अधिकांश पद्य शुद्ध संस्कृत में होते हुये भी कहीं कहीं शुद्धप्राकृत' या मिश्रभाषा का प्रयोग भी हुआ है। कुल १६९ पद्यों के छोटे से काव्य में भी २० छन्दों का प्रयोग, काव्यगत अन्य विधिताओं को देखते हुए कवि के वैविध्यप्रेम का सूचक है । परन्तु इतनी विभिन्नता तथा
विधता होते हुए भी इस काव्य में भी वे गुण न्यूनाधिक रूप में देखे जा सकते हैं जो कवि के अन्य काव्यों में पाये जाते हैं । इस काव्य की सब से बड़ी विशेषता है इसका चित्रकाव्यत्व | जैसा कि परिशिष्ट से ज्ञात होगा । इसमें कुल मिलाकर २८ चित्रों की योजना है, परन्तु यहां भी कवि वैविध्यम उसे ८ प्रकार के चित्रों का समावेश करने को बाधित करता है । सामान्य-सरलता और सुबोधता होते हुए भी इस काव्य में कहीं-कहीं चित्रकाव्य सुलभ क्लिष्टता भी आ गई है; जिसके लिये कवि बड़े विनम्र शब्दों में काव्य- उपसंहार करते हुए कहता है :
किमपि यदिहाश्लिष्टं क्लिष्ट तथा चिरसत्कविप्रकटितमथानिष्टं शिष्टं मया मतिदोषतः । तदमलधिया बोध्यं शोध्य सुबुद्धिधनैर्मनः प्रणयविशदं कृत्वा धत्वा प्रसादलवं मयि ॥
उनकी शैली की दूसरी प्रमुख विशेषता है चमत्कार प्रेम । यों तो विविधता में भी चमत्कार है और वस्तुतः उनका वैविध्यप्रेम चमत्कार - प्र ेम का पोषक होकर ही आया हुआ
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