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अध्याय: ५
कवि-प्रतिभा
जिनवल्लभसूरि को कविरूप में उच्च आदर प्राप्त हुआ था। कहा जाता है कि उस युग के लब्धप्रसिद्ध कवियों द्वारा भी ये पूज्यभाव से देखे जाते थे। उनके अपने पट्टध: युगप्रधान जिनदत्तसूरि द्वारा जिनवल्लभपुरि को माघ, कालिदास तथा वाक्पतिराज से भी बढकर कहा जाना चाहे स्नेह-श्रद्धा का पक्षपात लगे, परन्तु इसमें सन्देह नहीं कि सत्काव्य के जो मान मध्ययुगीय समाज में समादृत थे उनके अनुसार आचार्य जिनवल्लभ एक उच्चकोटि के कवि थे। जैन-परंपरा के अनुसार इनका काव्य नवरसों से पूर्ण और अपूर्व था। .यद्यपि उपलब्ध कृतियों से इस मत की पूर्णतया पुष्टि नहीं हो पाती परन्तु ऐसा प्रतीत होता है कि प्रचुरप्रशस्ति आदि जो अनेक काव्य' अभी तक अनुपलब्ध हैं वे, काव्य की दृष्टि से अधिक महत्त्व के थे।
काव्य शैली कवि जिनवल्लभ की काव्य शैली के मूल्यांकन के लिये हमें उनकी समस्त कृतियों पर दृष्टि रखनी होगी। उनकी कुल मिलाकर ४४ कृतियां प्राप्त हैं । प्राप्त रचनाओं में विषय, १. लब्धप्रसिद्धिभिः सुकविभिः सादरं यो महितः । चर्चरी पृष्ठ ४ २. सुकवि माघ ते प्रशंसन्ति ये तस्य शुभगुरोः, . साधु न जानतेऽज्ञा मतिजितसुरगुरोः । ।
कालिदासः कविरासीद् यो लोकर्वर्ण्यते, तावद् यावद् जिनवल्लभ कवि कर्ण्यते ।।
सुकविविशेषितवचनो यो वाक्पतिराजकविः
सोपि जिनवल्लभपुरतो न प्राप्नोति कीति काञ्चित् । चर्चरी पृष्ठ ५ ३. काव्यमपूर्व यो विरचयति नवरसभरसहितम् । जिनदत्तसूरि
नवरसरुचिरं काव्यम् । जिनपालोपाध्याय ४. तु० 'महाप्रबन्धरूप-प्रश्नोत्तरशतक-शृङ्गारशतक प्रचुरप्रशस्तिप्रभृतिक यो विरचयति नवरसभरसहितन्
(जिनपालोपाध्याय)
वल्लभ-भारती ]
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